डोरा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]डोरा ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ डोरक]
१. रूई, सन, रेशम आदि को बटकर बनाया हुआ ऐसा खंड जो चौड़ा या मोटा न हो, पर लंबाई में लकीर के समान दूर तक चला गया हो । सूत्र । सूत । तागा । धागा । जैसे, कपड़ा सीने का डोरा, माला गूँधने का डोरा ।
२. धारी । लकीर । जैसे,—कपड़ा हरा है, बीच बीच में लाला डोरे हैं । क्रि॰ प्र॰—पड़ना ।—होना ।
३. आँखों की बहुत महीन लाल नसें जो साधारण मनुष्यों की आँख में उस समय दिखाई पड़ती है जब वे नशे की उमंग में होते हैं या सोकर उठते हैं । जैसे,—आँखों में लाल डोरे कानों में बालियाँ ।
४. तलवार की धार । उ॰—डोरत में बाछे चीनी आछे आगे पाछे अति भारी ।—पद्माकर ग्रं॰ पृ॰ २८७ ।
५. तपे घी की धार, जो दाल आदि में ऊपर से डालते समय बँध जाती है । मुहा॰—डोर देना = तपा हुआ घी ऊपर से डालना ।
६. एक प्रकार की करछी जिसकी डाँड़ी खड़े बल लगी रहती हैं और जिससे घी निकालते हैं या दूध आदि कढ़ाह में चलाते हैं । परी ।
७. स्नेहसूत्र । प्रेम का बंधन । लगन । मुहा॰—डोरा डालना = प्रेमसूत्र में बद्ध करना । प्रेम में फँसाना । अपनी ओर प्रवृत्त करना । परचाना । उ॰—यह डोरे कहीं और डालिए, समझे आप ।—फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ १२५ । डोरा लगना = स्नेह का बंधन होना । प्रीति सबंध होना ।
८. वह वस्तु जिसका अनुसरण करने से किसी वस्तु का पता लगे । अनुसंधान सूत्र । सुराग । उ॰—जुबति जोन्ह में मिलि गई नेक न देत लखाय । सौंधे के डोरे लगी, अली चली सँग जाय ।—बिहारी (शब्द॰) । †
९. काजल या सुरमे की रेखा ।
१०. नृत्य में कंठ की गति । नाचने में गरदन हिलाने का भाव ।
डोरा ^२ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ ढ़ोड़] पोस्ते का डोड़ । डोडा ।