तारक
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]तारक संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. नक्षत्र । तारा ।
२. आँख ।
३. आँख की पुतली ।
४. इंद्र का शत्रु एक असुर । इसने जब इंद्र को बहुत सताया, तब नारायण ने नपुंसक रूप धारण करके इसका नाश किया । (गरुड़पुराण) ।
५. एक असुर जिसे कार्तिकेय ने मारा था । दे॰ 'तारकासुर' । यौ॰—तारकजित्, तारकरिपु, तारकवैरी, तारकसूदन = कार्तिकेय ।
६. राम का षडक्षर मंत्र जिसे गुरु शिष्य के कान में कहता है औ र जिससे मनुष्य तर जाता है । 'औ' रामाय नमः' का मंत्र ।
७. भिलावाँ । भेलक ।
८. वह जो पार उतारे ।
९. कर्णधार । मल्लाह ।
१०. भवसागर से पार करनेवाला । तारनेवाला । उ॰—नृप तारक हरि पद भजि साँच बड़ाई पाइय ।— भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ १, पृ॰ ६९७ ।
११. एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में चार सगण ओर एक गुरु होता है (IIS IIS IIS IIS S) ।
१२. एक वर्ग का नाम, जो अंत्येष्टि कराता है—'महाब्राह्मण' । उ॰—यह फतहपुर का महाब्राह्माण (तारक का आचारज) था ।—सुंदर॰ ग्रं॰, भा॰ १, पृ॰ ८५ ।
१३. गरुड़ । उ॰—ग्रंथा जातियाँ लखमण गीता मुनि विहंगा तारक ससि माथ ।—रघु॰, रू॰, पृ॰ २५५ ।
१४. कान (को॰) ।
१५. महादेव (को॰) ।
१६. हठयोग में तरने का उपाय (को॰) ।
१७. एक उपनिषद (को॰) ।
१८. मुद्रण में तारे का चिह्न- * ।
तारक टोड़ी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ तारक + हिं॰ टोड़ी] एक राग जिसमें ऋषभ और कोमल स्वर लगते हैं और पंचम वर्जित होता है । (संगीत रत्नाकर) ।
तारक तीर्थ संज्ञा पुं॰ [सं॰] गया तीर्थ, जहाँ पिंडदान करने से पुरखे तर जाते हैं ।
तारक ब्रह्म संज्ञा पुं॰ [सं॰] राम का षडक्षर मंत्र । रामतारक मँत्र । 'ओं रामाय नमः' यह मंत्र ।