तितली
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]तितली संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ तीतर, पू॰ हिं॰ तितिल (चित्रित डैनों के कारण)]
१. एक उड़नेवाला सुंदर कीड़ा या फतिंगा जो प्रायः बगीचों मे फूलों के पराग और रस आदि पर निर्वाह करता है । विशेष—तितली के छह पैर होते है और मुँह से बाल के ऐसी दो सूंड़ियाँ निकली होती है जिनसे यह फूलों का रस चूसती है । दोनों ओर दो दो के हिसाब से चार बड़े पंख होने है । भिन्न भिन्न तितलियों के पंख भिन्न भिन्न रंग के होते है और किसी किसी में बहुत सुंदर बुटियाँ रहती हैं । पंख के अतिरिक्त इसका और शरीर इतना सूक्ष्म या पतला होता है कि दूर से दिखाई नहीं देता । गुबरेले, रेशम के कीड़े आदि फतिंगों के समान तितली के शरीर का भी रूपांतर होता है । अंडे से निकलने के ऊपरांत यह कुछ दिनों तक गाँठकर ढोले या सूँड़े के रूप में रहती है । ऐसे ढोले प्रायः पौधों की पत्तियों पर चिपके हुए मिलते हैं । इन ढोलों का मुँह कुतरने योग्य होता है और यै पौधों को कभी कभी बड़ी हानि पहुँचाते हैं । छह असली पैरों के अतिरिक्त इन्हें कई ओर पैर होते हैं । ये ही ढोले रूपांतरित होते होते तितली के रूप में हो जाते हैं और उड़ने लगते हैं ।
२. एक घास जो गेहूँ आदि के खेतों में उगती है । विशेष—इसका पौधा हाथ सवा हाथ तक का होता है । पत्तियाँ पतली पतली होती हैं । इसकी पत्तियाँ और बीज दवा के काम में आते हैं ।