दोहा
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]दोहा संज्ञा पुं॰ [हिं॰ दो + हा (प्रत्य॰)]
१. एक हिंदी छंद, जिसमें होते तो चार चरण हैं, पर जो लिखा दो पंक्तियों में जाता है, अर्थात् पहला और दूसरा चरण एक पंक्ति में और तीसरा और चौथा चरण दूसरी पंक्ति में लिखा जाता है । इसके पहले और तचीसरे चरण में १३—१३ मात्राएँ और दूसरे तथा चौथे चरण में ११—११ मात्राएँ होती हैं । दूसरे और चौथे तरण का तुकांत मिलना चाहिए । जैसे,—राम नाम मणि दीप धरु, जीह देहरी द्वार । तुलसी भीतर बाहिरो, जौ चाहसि उजियार । विशेष—इसी को उलट देने से सोरठा हो जाता है ।
२. संकीर्ण राग का एक भेद ।