नायक
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]नायक संज्ञा पुं॰ [सं॰] [स्त्री॰ नायिका]
१. जनता को किसी ओर प्रवृत्त करने का अधिकार या प्रभाव रखनेवाला पुरुष । लोगों को अपने कहे पर चलानेवाला आदमी । नेता । अगुआ । सरदार । जैसे, सेना का नायक ।
२. अधिपति । स्वामी । मालिक । जैसे, गणनायक ।
३. श्रेष्ठ पुरुष । जननायक । उ॰—सब नायक होई जाय बैल फिर कौन लदावै ।—पलटू॰, भा॰ १, पृ॰ ५ ।
४. साहित्य में श्रृंगार का आलंबन या साधक रूप-यौवन-संपन्न अथवा वह पुरुष जिसका चरित्र किसी काव्य या नाटक आदि का मुख्य विषय हो । विशेष—साहित्यदर्पण में लिखा है कि दानशील, कृती, सुश्री, रूपवान, युवक, कार्यकुशल, लोकरंजक, तेजस्वी, पंडित और सुशील ऐसे पुरुष को नायक कहते हैं । नायक चार प्रकार कै होते हैं—घीरोदात्त, धीरोद्धत, धीरललित और धीरप्रशांत । जो आत्मश्लाघाराहित, क्षमाशील, गंभीर, महाबलशाली , स्थिर और विनयसंपन्न हो उसे धीरोदात्त कहते हैं । जैसे, राम, युधिष्ठिर । मायावी, प्रचंड, अहंकार और आत्मश्लाधा- युक्त नायक को धीरौद्धत कहते हैं । जैसे, भीमसेन । निश्चित मूदु और नृत्यगीतादिप्रिय नायक को धीरललित कहते हैं । त्यागी और कृती नायक धीरप्रशांत कहलाता है । इन चारों प्रकार के नायकों के फिर अनुकूल, दक्षिण, धृष्ट और शठ ये चार भेद किए गए हैं । श्रृगांर रस में पहले नायक की तीन बेद किए गए हैं—पति, उपपति और वैशिक (वेश्यानुरक्त) । पति चार प्रकार के कहे गए हैं— अनुकूल, दक्षिण, धृष्ट और शठ । एक ही विवाहित स्त्री पर अनुरक्त पति को अनुकूल, अनेक स्त्रियों पर समान प्रीति रखनेवाले को दक्षिणा, स्त्री के प्रति अपराधी होकर बार बार अपमानित होने पर भी निर्लज्जतापूर्वक विनय करनेवाले को धृष्ट और छलपूर्वक अपराध छिपाने में चतुर पति को शठ कहते हैं । उपपति दो प्रकार के कहे गए हैं—वचनचतुर और क्रियाचतुर ।
५. हार के मध्य की मणि । माला के बीच का नग ।
६. संगीत कला में निपुण पुरुष । कलावंत ।
७. एक वर्णवृत्त का नाम ।
८. एक राग जो दीपक राग का पुत्र माना जाता है ।
९. दस सेनापतियों के ऊपर का अधिकारी ।
१०. कौटिल्य के अनुसार बीस हाथियों तथा घोड़ों का अध्यक्ष ।
११. शाक्य मुनि का नाम (को॰) ।