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नारियल

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नारियल
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संज्ञा

  1. एक प्रकार का फल

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

नारियल संज्ञा पुं॰ [सं॰ नारिकेल]

१. खजूर की जाति का एक पेड़ जिसके फल की गिरी खाई जाती है । विशेष—खंभे के रूप में इसका पेड़ पचास साठ हाथ तक ऊपर की ओर जाता है । इसके पत्ते खजूर की के से होते हैं । नारियल गरम देशों में ही समुद्र का किनारा लिए हुए होता है । भारत के आस पास के टापुओं में यह बहुत होता है । भारतवर्ष में समुद्रतट से अधिक से अधिक सौ कोस तक नारियल अच्छी तरह होता है, उसके आगे यदि लगाया भी जाता है तो किसी काम का फल नहीं लगता । फूल इसके सफेद होते हैं जो पतली पतली सींकों में मंजरी के रूप में लगते हैं । फल गुच्छों में लगते हैं जो बारह चौदह अंगुल तक लंबे और छह सात अंगुल तक चौड़े होते हैं । फल देखने में लंबोतरे और तिपहले दिखाई पड़ते हैं । उनके ऊपर एक बहुत कड़ा रेशेदार छिलका होता है जिसके नीचे कड़ो गुठलो ओर सफेद गिरी होती है जो खाने में मीठी होती है । नारियल के पेड़ लगाने की रीति यह है कि पके हुए फलों को लेकर एक या डेढ़ महीने घर मे रख छोड़े । फिर बरसात में हाथ डेढ़ हाथ गड्ढे खोदकर उनमें गाड़ दे और राख और क्षार ऊपर से डाल दे । थोड़े ही दिनों में कल्ले फूटेंगे क्षौर पौधे निकल आवेगे । फिर छह महीने या एक वर्ष में इन पौधों को खोदकर जहाँ लगाना हो लगा दे । भारतवर्ष में नारियल बंगाल, मदरास और बबई प्रांत में लगाए जाते हैं । नारियल कई प्रकार के होते हैं । विशेष भेद फलों के रंग और आकार में होता है । कोई बिल्कुल लाल होते हैं, कोई हरे होते हैं और कोई मिले जुले रंग के होते हैं । फलों के भीतर पानी या रस भरा रहता है जो पीने में मीठा होता है । नारियल बहुत से काभों में आता है । इसके पत्तों की चटाई बनती है जो घरों में लगती है । पत्तों की सींकों के झाड़ू बनते हैं । फलों के ऊपर जो मोटा छिलका होता हैं उससे बहुत मजबूत रस्से तैयार होते हैं । खोपड़े या गिरी के ऊपर के कड़े कोश को चिकना और चमकीला करके प्याले और हुक्के बनाते हैं । गिरी मेवों में गिनी जाती है । गिरी से एक मीठा गाढ़ा जमनेवाला तेल निकलता है जिसे लोग खाते भी हैं और लगाते भी । पूरी लकड़ो के घर की छाजन में इसका बरेरा लगता है । बबई प्रांत में नारियल से एक प्रकार का मद्य या ताड़ी बनाते है । वैद्यक में नारियल का फल, शीतल, दुर्जर, वृष्य तथा पित्त और दाहनाशक माना जाता है । नाजे फल का पानी शीतल, हृदय को हितकारी, दीपक और वीर्यवर्द्धक माना जाता है । एशिया में रूप और मडागास्कर द्विप से लेकर पूर्व की ओर अमेरिकी के तट तक नारियल के जो नाम प्रचलित हैं वे प्रायः सं॰ नारिकेल शब्द ही के विकृत रूप हैं । यह बात प्रायः सर्वसम्मत है कि नारियल का आदिस्थान भारत और बरमा के दक्षिण के द्विप (मालद्विप, लकद्विप, सिंहल, अंडमान, सुमात्रा, जावा इत्यादि) ही है । नारिकेल का उल्लेख वैदिक ग्रंथों में तो नहीं मिलता पर महाभारत, सुश्रुत आदि प्राचीन ग्रंथों में मिलता है । कथासरित्सागर में 'नारिकेल द्विप' का उल्लेख है । पर्या॰—नारिकेल । लांगली । सदापुष्प । शिरःफल । रसफल । सुतुंग । कूच्चंशेखर । दृढ़नील । नीलतरु । मंगल्य । तृणराज । स्कधतरु । दक्षिणात्य । त्र्यंबकफल । दृढ़फल । तुंग । सवाफल । कौशिकफल । फलमुंड । विश्वामित्राप्रिय । यौ॰—नारियल का खोपड़ा = नारियल की कड़ी गुठली जिसके भीतर गिरी की तह रहती है । मुहा॰—नारियल तोड़ना = मुसलमानों की एक रीति जो गर्भ रहने पर की जाती है । नारियल तोड़कर उससे लड़का या लड़की पैदा होने का शकुन निकालते हैं ।

२. नारियल का हुक्का ।