नीम
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]नीम ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ निम्ब] पत्ती झाड़नेवाला एक प्रसिद्ध पेड़ जिसके सब अंग कड़वे होते हैं । निंब । विशेष—इसकी उत्पत्ति द्विदलाकुर से होती है औ र पत्तियाँ डेढ़ दो वित्ते की पतली सीकों के दोनों ओर लगती हैं । ये पत्तियाँ चार पाँच अंगुल लंबी और अंगुल भर चौड़ी होती हैं । किनारे इनके आरी की तरह होते हैं । छोटे छोटे सफेद फूल गुच्छों में लगते हैं । फलियाँ भी गुच्छों में लगती हैं और निबौली कहलाती हैं । ये फलियाँ खिरनी की तरह लंबोतरी होतीं हैं और पकने पर चिपचिपे गूदे से भर जाती हैं । एक फली में एक बीज होता है । बीजों से तेल निकलता है जो कडुएपन के कारण केवल औषध के या जलाने के काम का होता है । नीम की तिताई या कडुवापन प्रसिद्ध है । इसका प्रत्येक भाग कडुवा होता है—क्या छाल, क्या पत्ती, क्या फूल, क्या फल । पुराने पेड़ों से कभी कभी एक प्रकार का पतला पानी रस रसकर निकलता है और महीनों बहा करता है । यह पानी कडुवा होता है । और 'नीम का मद' कहलाता है । नींम की लकड़ी ललाई लिए और मजबूत होती है तथा किवाड़, गाड़ी, नाव आदि बनाने के काम में में आती है । पतली टहनियाँ, दातून के लिये बहुत तोड़ी जाती हैं । वैद्यक में नीम कडुई, शीतल तथा कफ, व्रण, कृमि, वमन, सूजन, पित्तदोष और हृदय के दाह को दूर करनेवाली मानी जाती है । दूषित रक्त को शुद्ध करने का गुण भी इसका प्रसिद्ध है । पर्या॰—निंब । नियमन । नेता । पिचुमंद । अरिष्ट । प्रभद्रक । पारिभद्रक । शुकप्रिय शीर्षपर्ण । यवनेष्ट । वाल्वच । धर्दन । हिंगु । निर्यास । पीतसार । रविप्रिय । मालक । यूपारि । पूकमालक । कीकट । विबंध । कैटर्य्य । छर्दिध्न । काकफल । कीरेष्ट । सुमना । विशार्णिपर्ण । शीत । राजभद्रक । महा॰—नीम की टहनी हिलाना = गरमी की बीमारी लेकर बैठना । उपदंश या फिरंग रोगग्रस्त होना । (जिसमें लोग नीम की टहनी लेकर धाव पर से मक्खियाँ उड़ाया करते है) ।
नीम ^२ वि॰ [फा॰ मि॰ सं॰ नेम] आधा । अर्ध । जैसे, नीमटर, नीमहकीम । यौ॰—नीमपुख्त, नीमपुख्ता = अधपका । नीमशब = आधीरात । नीमहकीम = अधकचरा ज्ञान रखनेवाला हकीम ।