पंखा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]पंखा संज्ञा पुं॰ [हिं॰ पंख] [स्त्री॰ अल्पा॰ पंखी] वह वस्तु जिसे हिलाकर हवा का झोंका किसी ओर ले जाते है । बिजना । बेना । उ॰—अवनि सेज पंखा पवन अब न कछू परवाह ।— पद्माकर (शब्द॰) । विशेष—यह भिन्न भिन्न वस्तुओं का तथा भिन्न आकार और आकृति का बनाया जाता है और इसके हिलाने से वायु चलकर शरीर में लगती है । छोटे छोटे बेनों से लेकर जिसे लोग अपने हाथों में लेकर हिलाते हैं, बड़े बड़े पंखों तक के लिये, जिसे दूसरे हाथ में पकड़कर हिलाते हैं, या जो छत में लटकाए जाते हैं और डोरी के सहारे से खींचे जाते हैं या जिन्हें चरखी से चलाकर या बिजली आदि से हिलाकर वायु में गति उत्पन्न की जाती हैं, सबके लिये केवल 'पंखा' शब्द से काम चल सकता है । इसे पंख के आकार का होने के कारण अथवा पहले पंख से बनाए जाने के कारण पंखा कहते हैं । क्रि॰ प्र॰—चलाना ।—खींचना ।—झलना ।—हिलाना ।— डुलाना । मुहा॰—पंखा करना = पंखा हिला या डुलाकर वायु संचारित करना ।
२. भुजमूल का पार्श्व । पखुआ । पखुरा ।