पट्टा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]पट्टा संज्ञा पुं॰ [सं॰ पट्ट, पट्टक]
१. किसी स्थावर स्थावर संपत्ति विशेषत: भूमि के उपयोग का अधिकारपत्र जो स्वामी की ओर से आसामी, किरायेदार या ठेकेदार को दिया जाय । विशेष—मालिक अपनी जायदाद जिस काम के लिये और जिन शर्तों पर देता है और जिनके विरुद्ध आचरण करने से उसे अपनी वस्तु वापस ले लेने का अधिकार होता है वे इसमें लिख दी जाती हैं । साथ ही उसकी संपत्ति से लाभ उठाने के बदले आसामी से वह वार्षीक या मासिक धन या लाभांश उसे देने की जो प्रतिज्ञा करता है उसका भी इसमें निदेंश कर दिया जाता है । पट्टा साधारणत: दो प्रकार का होता है—(१) मियादी या मुद्दती और (२) इस्तमरारी । मियादी पट्टे के द्बारा मालिक एक विशेष अवधि तक के लिये असामी को अपनी चीज से लाभ उठाने का अधिकार देता है और उस अवधि के बीत जाने पर उसे उसको (आसामी को) बेदखल कर देने का अधिकार होता है । इस्तमरारी, दवामी, या सर्वकालिक पट्टे से वह असामी को सदा के लिये अपनी वस्तु के उपभोग का आधिकार देता है । आसामी की इच्छा होने पर वह इस अधिकार को दूसरो के हाथ कीमत लेकर बेच भी सकता है । जमींदारी का अधिकार जिस पट्टे के द्बारा एक निर्दिष्ट काल तक के लिये दूसरे को दिया जाता हैं उसे ठेकेदारी या मुस्ताजिरी पट्टा कहते हैं । आसामी जिस पट्टे के द्वारा असल मालिक से प्राप्त अधिकार या उसका अंशविशेष दूसरे को देता है उसे शिकमी पट्टा कहते हैं । पट्टे की शर्तों का स्वीकृतिसूचक जो कागज असामी की ओर से लिखकर मालिक या जमींदार को दिया जाता है उसे कबूलियत कहते हैं । पट्टे पर मालिक के और कबुलियत पर आसामी के हस्ताक्षर या सही अवश्य होनी चाहिए । कि॰ प्र॰—लिखना ।
२. कोई अधिकारपत्र । सनद ।
३. चमड़े या बानात आदि की बद्धी जो कुत्तों, बिल्लियों के गले में पहनाई जाती है । मुहा॰—पट्टा तोड़ना या तोड़ाना = कुत्ते या बिल्ली का अपने पालनेवाले के यहाँ से भागकर अन्यत्र चला जाना ।
४. एक गहना जो चूड़ियों के बीच में पहना जाता है ।
५. पीढ़ा ।
६. कामदार जूतियों पर का वह कपड़ा जिसपर काम बना होता है ।
७. घोड़े के मुँह पर का वह लंबा सफेद निशान जो नथुनों से लेकर मत्थे तक होता है ।
८. घोड़ों के मस्तक पर पहनाने का एक गहना ।
९. पुरुषों के सिर के बाल जो पीछे की ओर गिरे और बराबर कटे होते हैं ।
१०. चपरास ।
११. वह वृत्ताकार पट्टी जिसमें चपरास टँकी रहती है ।
१३. कन्यापक्ष के नाई, धोबी, कहार आदि का वह नेग जो विवाह में वरपक्ष से उन्हें दीलवाया जाता है । क्रि॰ प्र॰—चुकाना ।—चुकवाना । विशेष—देहात के हिंदुओं में यह रीति है कि नाई, धोबी, कहार, भंगी आदि की मजदूरी में से उतना अंश नहीं देते जितना पड़ते से अविवाहिता कन्या के हिस्से पड़ता है । कन्या का विवाह हो जाने पर यह सारी रकम इकट्ठी कर के पिता से उन्हें दिलवाई जाती है ।
१५. महाराष्ट्र देश में काम में लाई जानेवाली एक प्रकार की तलवार ।