पट्टी
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]पट्टी ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पट्टिका]
१. लकड़ी की वह लंबोतरी, चौरस और चिपटी पटरी जिसपर प्राचीन काल में विद्यार्थियों को पाठ दिया जाता था और अब आरंभिक छात्रों को लिखना सिखाया जाता है । पाटी । पटिया । तख्ती । मुहा॰—पट्टी पढ़ना = गुरु से पाठ प्राप्त करना । सबक पढ़ना । पट्टी पढ़ाना = छात्र को पट्टी लिखकर पाठ देना । सबक पढ़ा देना ।
२. पाठ । सबक । जैसे,—मैने यह पट्ट नहीं पढ़ी है । क्रि॰ प्र॰— पढ़ना ।—पढ़ाना ।
३. उपदेश । शिक्षा । सिखावान । जैसे,—(क) यह पट्टी तुम्हें किसने पढ़ाई थी ? (ख) आजकल तुम किसकी पट्टी पढ़ते हो जी ?
४. वह शिक्षा जो बुरी नियत से दी जाय । वह उपदेश जो उपदेशक स्वार्थसाधन के लिये दे । बहकानेवाली शिक्षा । बहकावा । भुलावा । चकमा । झाँसा । दम । जैसे,—तुम उनको जरा पट्टी पढ़ा देना, फिर मेरा काम बन जायगा । कि॰ प्र॰—देना । —पढ़ाना । मुहा॰—पट्टी में आना = किसी धूर्त के गुप्त अभिप्राय को न समझकर जो कुछ वह कहे उसे मान लेना । किसी के चकमे में आ जाना । किसी के दम में आ जाना ।
५. लकड़ी की वह बल्ली जो खाट के ढाँचे की लंबाई में लगाई जाती है । पाटी ।
६. धातु, कागज या कपड़े की धज्जी । क्रि॰ प्र॰—उतारना ।—काटना ।—तराशना ।
७. कपड़े की वह धज्जी जो घाव या अन्य किसी स्थान में बाँधी जाय । क्रि॰ प्र॰—बाँधना ।
८. पत्थर का पतला, चिपटा और लंबा टुकड़ा ।
९. लकड़ी की लंबी बल्ली जो छत या छाजन के ठाठ में लगाई जाती है ।
१०. ठाठ की ओर की बल्लियों की पाँती ।
११. सन की बुनी हुहँ धज्जियाँ जिनके जोड़ने से टाट तैयार होते हैं ।
१३. कपड़े की कोर या किनारी ।
१३. वह तख्ता जो नाव के बीचों बीच होता है ।
१४. एक प्रकार की मिठाई जिसमें चाशनी में अन्य चीजें जैसे चना, तिल आदि मिलाकर जमाते और फिर उसके चिपटे, पतले और चौकोर टुकड़े काट लिए जाते हैं ।
१५. सूती या ऊनी कपड़े की धज्जी जिसे सर्दी और थकावट से बचने के लिये टाँगों में बाँधते हैं । विशेष—यह चार पाँच अंगुल चौड़ी और प्राय: पाँच हाथ लंबी होती है । इसके एक सिरे पर मजबुत कपड़े की एक और पतली धज्जी टँकी रहती है जिससे लपेटने के बाद ऊपर की ओर कसकर बाँध देते हैं । अन्य लोग इसे केवल जाड़े में बाँधते हैं, पर सेना और पुलिस के सिपाहियों को इसे सभी ऋतु्ओं में बाँधना पड़ता है ।
१६. पंक्ति । पाँती । कतार ।
१७. माँग के दोनों ओर के कंघी से खूब बैठाए हुए बाल जो पट्टी से दीखाई पड़ते है । पाटी । पटीया । उ॰—तेल औ पानी से पट्टी है सँवारी सिर पर । मुँह पँ माँझा दीये जल्लादो जरी आती है ।—भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ ३, पृ॰ ७९० । विशेष—पट्टी अच्छी तरह बैठाने के लिये कुछ स्त्रियाँ बालों में भिगोया हुआ गोंद, अलसी का लुआब अथवा तेल और पानी भी लगाती हैं । क्रि॰ प्र॰—बैठाना ।—सँवारना । मुहा॰—पट्टी जमाना = माँग के दोनों ओर के बालों को गोंद या लुआब आदि की सहायता से इस प्रकार बैठाना कि वे सिर में बिलकुल चिपक जायँ और पट्टी से मालूम होने लगें । पट्टी बैठाना या सँवारना ।
१८. किसी वस्तु, विशेषत: किसी संपत्ति का, एक एक भाग । हिस्सा । भाग । विभाग । पत्ती ।
१९. ऐसी जमींदारी का एक भाग जो एक ही मूल पुरुष के उत्तराधिकारियों या उनके द्बारा नियत किए हुए व्यक्तियों की संयुक्त संपत्ति हो । किसी जंमींदारी का उतना भाग जो एक पट्टीदार के अधिकार में हो । पट्टीदारी का एक मुख्य भाग । थोक का एक भाग । हिस्सा । यौ॰—पट्टीदार । पट्टीदारी । मुहा॰—पट्टी का गाँव = पट्टीदारी गाँव । वह गाँव जिसके बहुत से मालिक हों और इस कारण उसमें सुप्रबंध का अभाव हो । उ॰—पट्टी का गाँव और टट्टी का घर अच्छा नहीं होता ।
२०. वह अतिरिक्त कर जो जमींदार किसी विशेष प्रयोजन क े निमित्त आवश्यक धन एकत्र करने के लिये असामियों पर लगाता है । नेग । अबवाब ।
पट्टी ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ पट] घोड़े की वह दौड़ जिसने वह बहुत दूर तक सीधा दौड़ता चला जाय । लंबी और सीधी सरपट । जैसे,—घोड़े को पट्टी दो ।
पट्टी ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. पठानी लोध ।
२. एक शिरोभूषण । एक गहना जो पगड़ी में लगाया जाता है ।
३. तलसारक । तोबड़ा ।
४. घोड़े की तंग । †
५. एक आभूषण । उ॰— बाहों में बहु बहुटे, जोशन बाजूबंद, पट्टी बाँध सुषम, गहने ले गँवारियों के धन ।—ग्राम्या, पृ॰ ४० ।