पढ़ना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]पढ़ना ^१ क्रि॰ स॰ [सं॰ पठन]
१. कीसी लिखावट के अक्षरों का अभिप्राय समझना । किसी पुस्तक, लेख आदि को इस प्रकार देखना कि उसमें लिखी बात मालूम हो जाय । जैसे,—इस पुस्तक को मैं तीन बार पढ़ गया । संयो॰ क्रि॰—जाना ।—डालना ।—लेना ।
२. किसी लिखावट के शब्दों का उच्चारण करना । उच्चारण- पूर्वक पाठ करना । बाँचना । किसी लेख के अक्षरों से सूचित शब्दों को मुहँ से बोलना । जैसे,—जरा और जौर से पढ़ो कि हमको भी सुनाई दे । संयो॰ क्रि॰—जाना ।—देना ।
३. उच्चारण करना । मध्यम या धीरे स्वर से कहना । जैसे,— तुम कौन सा मंत्र पढ़ रहे हो । संयो॰ क्रि॰—जाना ।—देना ।
४. स्मरण रखने के लिये किसी विषय का बारबार उच्चारण करना । रटना । जैसे, पहाड़ा पढ़ना । संयो॰ क्रि॰—जाना ।—डालना ।
५. मंत्र फूँकना । जादू करना । संयो॰ क्रि॰—देना ।
६. तोते, मैना आदि का मनुष्यों के सिखाए हुए शब्द उच्चारण करना । जैसे,—बूढ़ा तोता भला क्या पढ़ेगा ।
७. विद्या पढ़ना । शिक्षा प्राप्त करना । अध्ययन करना । जैसे,—इस लड़के का मन पढ़ने में खूब लगता है । संयो॰ क्रि॰—जाना ।—लेना । यो॰—पढ़ना लिखना = शिक्षा पाना । पढ़ना पढ़ाना । पढ़ने लिखने या पढ़ने पढ़ाने का काम । पढ़ा लिखा = शिक्षित । जिसने शिक्षा प्राप्त की हो ।
८. नया पाठ प्राप्त करना । नया सबक लेना । जैसे,—तुमने आज पढ़ लिया या नहीं ? संयो॰ क्रि॰—लेना ।
पढ़ना ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पाठीन] एक प्रकार की मछली । विशेष— दे॰ 'पढ़िना' ।