पत
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]पत पु † संज्ञा पुं॰ [सं॰ पति]
१. पति । खसम । खाविंद ।
३. मालिक । स्वामी । प्रभु ।
पत ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ प्रतिष्ठा]
१. कानि । लज्जा । आबरू । विशेष—दे॰ 'पति' । उ॰—मुख मेरा चूमत दिन रात । होठों लागत कहत न बात । जासे मेरी जग में पत । ए सखी साजन ना सखी नथ ।—खुसरो (शब्द॰) ।
२. प्रतिष्ठा । इज्जत । उ॰—बोला है तुझे गम है ऊँटों का, कुछ गम नंई पत रहमाँ का ।—दक्खनी॰, पृ॰ २२३ । क्रि॰ प्र॰—खोना ।—गँवाना ।—जाना ।—रखना । यौ॰—पतपानी = लज्जा । आबरू । मुहा॰—पत उतारना = किसी की प्रतिष्ठा नष्ट करनेवाला काम करना । दस आदमियों के बीच में किसी का अपमान करना । बेइज्जती करना । आबरू लेना । पत रखना = प्रतिष्ठा भंग न होने देना । इज्जत बनी रहने देना । इज्जत बचाना । पत लेना = दे॰ 'पत उतारना' ।
पत ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पत्र, प्रा॰, अप॰ पत्त, पत] पत्ता । पत्र । जैसे, पतझर ।