पराग
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]पराग ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰] वह रज या धूलि जो फूलों के बीच लंबे केसरों पर जमा रहती है । पुष्परज । विशेष—इसी पराग के फूलों के बीच के गर्भकोशों में पड़ने से गर्भाधान होता और बीज पड़ते हैं ।
२. धूलि । रज ।
३. एक प्रकार का सुगंधित चूर्ण जिसे लगाकर स्नान किया जाता है ।
४. चंदन ।
५. उपराग । ग्रहण ।
६. कपूंररज । कपूर की धूल या चूर्ण ।
७. विख्याति ।
८. एक पर्वत ।
९. स्वच्छंद गति वा गमन ।
पराग † ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ प्रयाग] दे॰ 'प्रयाग' । उ॰—गया गोमती काशि परागा । होइ पुष्य जन्म शुद्धि अनुरागा ।—कबीर सा॰, पृ॰ ४०२ ।