पहाड़
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]पहाड़ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पाषाण] [स्त्री॰ अल्पा॰ पहाड़ी]
१. पत्थर, चूने, मिट्टी आदि की चट्टानों का ऊँचा और बड़ा समूह जो प्राकृतिक रीति से बना हो । पर्वत । गिरि । (विशेष विवरण के लिये दे॰ 'पर्वत') । मुहा॰—पहाड़ उठाना = (१) भारी काम सिर पर लेना । (२) भारी काम पूरा करना । पहाड़ कटना = बहुत भारी और कठिन काम हो जाना । ऐसे काम का हो जाना जा असंभव जान पड़ता रहा हो । बड़ी भारी कठिनाई दूर होना । संकट कटना । पहाड़ काटना = असंभव कार्य कर डालना । बहुत भारी काम कर डालना । ऐसा काम कर डालना जिसके होने की बहुत कम आशा रही हो । संकट से पीछा छुड़ावा । पहाड़ टूटना था टूट पड़ना = अचानक कोई भारी आपत्ति आ पड़ना । महान संकट उपस्थित होना । एकाएक भारी मुसीबत आ पड़ना । जैसे,—बैठे बैठाए बेचारे पर पहाड़ टूट पड़ा । पहाड़ से टक्कर लेना = अपने से बहुत अधिक बलवान् व्यक्ति से शत्रुता ठानना । बड़े से बैर करना । जबरदस्त से मुकाबिला करना । पहाड़ों से सिर टकराना = अपने से बहुत बड़े शक्तिमान् से संघर्ष मोल लेना । उ॰—अब आप पहाड़ों से सिर टकराइए ।—फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ १७६ ।
२. किसी वस्तु का बहुत भारी ढेर । किसी वस्तु का बहुत बड़ा समूह । पहाड़ के समान ऊँची राशि या ढेर । जैसे,—बात की बात में वहाँ पुस्तकों का पहाड़ लग गया ।
पहाड़ ^२ वि॰
१. पहाड़ की तरह भारी (चीज) । बहुत बोझल (चीज) । अतिशय गुरु (वस्तु) । जैसे,—तुम्हें तो पाव भर का बोझ भी पहाड़ मालूम पड़ता है ।
२. (वह) जिससे निस्तार न हो सके । (वह) जिसको समाप्त या शेष न कर सकें । जैसे,—(क) आज की रात हमारे लिये पहाड़ ह ो गई है । (ख) यह कन्या हमारे लिये पहाड़ हो गई है ।
३. अति कठिन (कार्य) । अति दुष्कर (काम) । दुस्साध्य (कर्म) । जैसे,—तुम तो हर एक काम ही को पहाड़ समझते हो ।