पारद

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पारद संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. पारा ।

२. एक प्राचीन जाति जो पारस के उस प्रदेश में निवास करती थी जो कास्पियन सागर के दक्षिण के पहाड़ों को पार करके पड़ता था । इसके हाथ में बहुत दिनों तक पारस साम्राज्य रहा । दे॰ 'पारस' । विशेष— महाभारत, मनुस्मृति, बृहत्संहिता इत्यादि में पारद देश और पारद जाति का उल्लेख मिलता है । यथा— 'पौंड्र- काश्चौंखूद्रविडाः काम्बोजा यवनाः शकाः । पारदाः पह्लवाश्चीना ः किराता दरदाः खशाः । (मनु॰ १० । ४४) । इसी प्रकार बृहत्संहिता में पश्चिम दिशा में बसनेवाली जातियों में 'पारत' और उनके देश का उल्लेख है— 'पञ्चनद रमठ पारत तारक्षिति श्रृंग वैश्य कनक शकाः । पुराने शिलालेखों में 'पार्थव' रूप मिलता हैं जिससे युनानी 'पार्थिया' शब्द बना है । युरोपीय विद्वानों ने 'पह्लव' शब्द को इसी 'पार्थिव' का अपभ्रंश यटा रूपांतक मानकर पह्लव और पारद को एक ही ठहराया है । पर संस्कृत साहित्य में ये दोनों जातियाँ भिन्न लिखी गई हैं । मनुस्मृति के समान महाभारत और बृहत्संहिता में भी 'पह्लव' 'पारद' से अलग आया है । अतः 'पारद 'का'पह्लव' से कोई संबंध नहीं प्रतीत होता । पारस में पह्लव शब्द शाशानवंखी सम्राटों के समय से ही भाषा और लिपि के अर्थ में मिलता है । इससे सिद्ध होता है कि इसका प्रयोग अधिक व्यापक अर्थ में पारसियों को लिये भारतीय ग्रंथों में हुआ है । किसी समय में पारस के सरदार 'पहलबान' कहलाते थे । संभव है, इसी शब्द से 'पह्लव' शब्द बना हो । मनुस्मृति में 'पारदों' और 'पह्लवों' आदि को आदिम क्षत्रिय कहा है जो ब्राह्मणों के अदर्शन से संस्कारभ्रष्ट होकर शूद्रत्व को प्राप्त हो गए ।