पाल
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]पाल ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. पालक । पालनकर्ता ।
२. चरवाहा ।
३. पीकदान । ओगालदान ।
४. चित्रक वृक्ष । चीते का पेड़ ।
५. बंगाल का एक प्रसिद्ध राजवंश जिसने साढे़ तीन सौ वर्ष तक वंग और मगध में राज्य किया ।
६. बंगालियों की एक उपाधि ।
७. राजा । नरेश (को॰) ।
पाल ^२ संज्ञा पुं॰ [हि॰ पालना]
१. फलों को गरमी पहुँचाकर पकाने के लिये पत्ते बिछाकर रखने की विधि । विशेष— अब कारबाइड नामक रासयनिक चूर्ण से भी फल आदि पकाए जाने लगे हैं । इससे आम आदि अपेक्षाकृत शीघ्र पकते हैं । क्रि॰ प्र॰—डालना ।—पड़ना ।
२. फलों को पकाने के लिये भूसा या पत्ते कागज आदि विछाकर बनाया हुआ स्थान । जैसे,— पाल का पका आम अच्छा होता है ।
पाल ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पट या पाट]
१. वह लंबा चौड़ा कंपड़ा जिसे नाव के मस्तूल से लगाकर इसलिये तानते है जिसमें हवा भरे और नाव को ढकेले । क्रि॰ प्र॰—चढ़ाना ।—तानना ।—उतारना ।
२. तंबू । शामियाना । चँदोवा ।
३. गाड़ी या पालकी आदि ढकने का कपड़ा ओहार ।
पाल ^४ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ पालि]
१. पानी को रोकनेवाला बाँध या किनारा । मेड़ । उ॰— सतगुरु बरजै सिष करै क्यूँ करि बंचै काल । दुहु दिसि देखत बहि गया पाणी फोड़ी पाल ।—दादू॰ पृ॰ १८ ।
२. मोटा । ऊँचा किनारा । कगार । उ॰— खेलत मानसरोदक गई । जाइ पाल पर ठाढ़ी भई ।—जायसी (शब्द॰) ।
३. पानी के कटाव से कुआँ, नदी आदि के किनारे पर भोतर की ओर बननेवाला खोखला स्थान ।
पाल ^५ संज्ञा पुं॰ [?] कबूतरों का जोड़ा खाना । कपोत- मैथुन । क्रि॰ प्र॰—खाना ।
पाल ^६ संज्ञा पुं॰ [?] तोप, बंदुक या तमंचे की नाल का घेरा या चक्कर । (लश॰) ।
पाल पु † ^७ संज्ञा स्त्री॰ [प्रा॰ पाल] एक आभूषण । दे॰ 'पायल' । उ॰— घम्म घमंतइ घुघरइ, पग सोनेरो पाल । मारू चाली मंदिरे, जाणि जाणि छुटो छंछाल ।— ढोला॰ दू॰, ५३९ ।