पूरक
कुछ अतिरिक्त।
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]पूरक ^१ वि॰ [सं॰] पूरा करनेवाला । जिससे किसी की पूर्ति हो ।
पूरक ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰] प्राणायाम विधि के तीन भागों में से पहला भाग जिसमें श्वास को नाक से खींचते हुए भीतर की ओर ले जाते हैं । योगविधि से नाक के दाहिने नधने को बंद करके बाएँ नथने से श्वास को भीतर की ओर खींचना ।
२. बिजौरा नीबू ।
३. वे दस पिंड जो हिंदुओं में, किसी के मरने पर उसके मरने की तिथि से दसवें दिन तक नित्य दिए जाते हैं । विशेष—कहते हैं, जब शरीर जल जाता है तब इन्हीं पिंड़ों से मृत व्यक्ति के शरीर की पूर्ति होती है और इसी लिये इन्हें पूरक कहते हैं । पहले पिंड से मस्तक, दूसरे से आँखें, नाक और कान, तीसरे से गला, चौथे से बाँहें और छाती इसी प्रकार अलग अलग पिंडों से अलग अलग अंगों का बनना माना जाता है ।
४. वह अंक जिसके द्वारा गुणा किया जाता है । गुणक अंक ।
५. वह अंश जो किसी चीज की कमी को पूरा करने के लिये रखा जाय । जैसे, पूरक (सप्लिमेंटरी) परीक्षा ।