प्रीति
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]प्रीति संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. वह सुख जो किसी इष्ट वस्तु को देखने या पाने से होता है । तृप्ति ।
२. हर्ष । आनंद । प्रस- न्नता ।
३. प्रेम । स्नेह । प्यार । मुहब्बत ।
४. मध्यम स्बर की चार श्रुतियों में से अंतिम श्रुति ।
५. काम की एक पत्नी का नाम जो रति की सौत थी । विशेष— कहते हैं कि किसी समय अनंगवती नाम की एक वेश्या थी जो साघ में विभूतिद्वादशी का विधिपूर्वक व्रत करने के कारण दूसरे जन्म में कामदेव की पत्नी हो गई थी । मत्स्य पुराण में इसका आख्यान है ।
६. फलित ज्योतिष के २७ योगों में से दूसरा योग । विशेष— इस योग में सब शुभ कर्म किए जाते हैं । इस योग में जन्म ग्रहण करने से मनुष्य नीरोग, सुखी, विद्वान् श्रौर धनवान् होता है ।
७. कृपा । दया (को॰) ।
८. अभिलाषा । आकांक्षा । वांच्छा । (को॰) ।
९. अनुकूलता । सख्य । हितबुद्धि (को॰) ।
१०. अनुरंजन । प्रसादन (को॰) ।