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बारी

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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बारी ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अवार]

१. किनारा । तट । उ॰—जियत न नाई नार चातक घन तजि दूसरेहि । सुरसरिहू की बारि मरत न माँगेउ अरध जल ।—तुलसी (शब्द॰) । मुहा॰—बारी रहो=किनारे होकर चलो । बचकर चलो । विशेष—पालकी के आगेवाले कहार काँटे आदि चुभने पर 'बारी रहो' कहते हैं जिससे पीछे का वाहक उसे बचाकर आवे ।

२. वह स्थान जहाँ किसी वस्तु के विस्तार का अंत हुआ हो । किसी लंबाई चौड़ाईवाली वस्तु का बिलकुल छोर पर का भाग । हाशिया ।

३. बगीचे, खेत आदि के चारों ओर रोक के लिये बनाया हुआ घेरा । बाड़ा ।

४. किसी बरतन के मुँह का घेरा या छिछले बरतन के चारों ओर रोक के लिये उठा हुआ घेरा या किनारा । औंठ । जैसे, थाली की बारी, लोटे की बारी ।

५. धार । बाढ़ । पैनी वस्तु का किनारा ।

बारी ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ वाटी, वाटिका (=बगीचा, घेरा घर)]

१. पेड़ों का समूह या वह स्थान जहाँ से पेड़ लगाए गए हों । बगीचा । जैसे, आम की बारी । उ॰—(क) सरग पताल भूमि लै बारी । एकै राम सकल रखवारी ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) जरि तुमहरि चह सवति उखारी । रूँधहुँ करि उपाय बर बारी ।—तुलसी (शब्द॰) । (ग) लग्यो सुमन है सुफल तह आतप रोस निवारि । बारी बारी आपनी सींच सुहृदता वारि ।—बिहारी (शब्द॰) ।

२. मेंड़ से घिरा स्थान । क्यारी । उ॰—गेंदा गुलदावदी गुलाब आबदार चारु चंपक चमेलिन की न्यारी करी बारी मैं ।— व्यंग्यार्थ॰, पृ॰ ३७ ।

३. घर । मकान । दे॰ 'बाड़ी' ।

४. खिड़की । झरोखा ।

५. जहाजों के ठहरने का स्थान । बंदरगाह ।

६. रास्ते में पड़े हुए काँटे, झाड़ इत्यादि । (पालकी के कहार) ।

बारी ^३ संज्ञा पुं॰ [स्त्री॰ बारिन, बारिनी पु] एक जाति जो अब पत्तल, दोने बनाकर ब्याह, शादी आदि में देती है और सेवा करती है । पहले इस जाति के लोग बगीचा लगाने और उनकी रखवाली आदि का काम करते थे इससे कामकाज में पत्तल बनाना उन्हीं के सुपुर्द रहता था । उ॰—नाऊ बारी, भाट, नट राम निछावरि पाइ । मुदित असीसहिं नाइ सिर हरष न हृदय समाइ ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) लिए बारिन पत्रावली जात मुसकाती ।—प्रेमघन॰, भा॰ १, पृ॰ १७ ।

बारी ^४ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ बार] बहुत बातों में से एक एक बात के लिये समय का कोई नियत अंश जो पूर्वापर क्रम के अनुसार हो । आगे पीछे के सिलसिले के मुताबिक आनेवाला मौका । अवसर । ओसरी । पारी । जैसे,—अभी दो आदमियों के पीछे तुम्हारी बारी आएगी । उ॰—(क) धरी सो बैठि गनइ धरियारी । पहर पहर सो आपनि बारी ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) काहू पै दुःख सदा न रह्यो, न रह्यो सुख काहू के नित्त अगारी । चक्रनिमी सम दोउ फिरै तर ऊपर आपनि आपनि बारी ।—लक्ष्मणसिंह (शब्द॰) । मुहा॰—बारी बारी से=कालक्रम में एक के पीछे एक इस रीति से । समय के नियत अंतर पर । जैसे,—सब लोग एक साथ मत आओ, बारी बारी से आओ । बारी बँधना=आगे पीछे के क्रम से एक एक बात के लिये अलग अलग समय नियत होना । उ॰—तीनहु लोकन की तरुनीन की बारी बँधी हुत ी दंड दुहू की ।—केशव (शब्द॰) । बारी बाँधना=एक एक बात के लिये परस्पर आगे पीछे समय नियत करना ।

बारी ^५ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ बारा (=छोटा)]

१. लड़की । कन्या । वह जो सयानी न हो ।

२. थोड़े वयस की स्त्री । नवयौवना । उ—बुढ़िया हँस कह मैं नितहि बारि । मोहिँ अस तरुनी कहु कौन नारि ?—कबीर (शब्द॰) ।

बारी ^६ वि॰ स्त्री॰ थोड़ी अवस्था की । जो सयानी न हो । उ॰—बारी वधू मुरझानी बिलोकि, जिठानी करै उपचार कितै कौ ।— पद्माकर (शब्द॰) ।

बारी † ^७ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰] दे॰ 'बाली' ।