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बुद्धि

विक्षनरी से

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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बुद्धि संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. वह शक्ति जिसके अनुसार मनुष्य किसी उपस्थित विषय के संबंध में ठीक ठीक विचार या निर्णय करता है । विवेक या निश्चय करने की शक्ति । अक्ल । समझ । विशेष— हमारे यहाँ बुद्धि अंतःकरण की चार वृत्तियों में से दूसरी वृत्ति मानी गई है ओर इसके नित्य और अनित्य दो भेद रखे गए हैं । इसमें से नित्य बुद्धि परमात्मा की और अनित्यबुद्धि जीव की मानी गई है । सांख्य के मत से त्रिगुणात्मिका प्रकृति का पहला विकार यही बुद्धितत्व है; और इसी को महतत्व भी कहा गया है । सांख्य मे यह भी माना गया है कि आरंभ में ज्यों ही जगत् अपनी सुपुप्तावस्था से उठा था, उस समय सबसे पहले इसी महत् या बुद्धितत्व का विकास हुआ था । नैयायिकों न इसके अनुभूति और स्मृति ये दो प्रकार माने हैं । कुछ लोगों के मत से बुद्धि के इष्टानिष्ट, विपत्ति, व्यवसाय, समाधिता, संशय ओर प्रतिपत्ति यो पाँच गुण और कुछ लोगों के मत से सुश्रुषा, श्रवण, ग्रहण, धारण, उह, उपोह ओर अर्थविज्ञान ये सात गुण हैं । पाश्चात्य विद्वान् अतःकरण के सब व्यापारों का स्थान मस्तिष्क मानते हैं । इसलिये उनके अनुसार बुद्धि का स्थान भी मस्तिष्क हो है । यद्यपि यह एक प्राकृतिक शक्ति है, तथापि ज्ञान और अनुभव की सहायता से इसमें बहुत कुछ वृद्धि हो सकती है । पर्या॰—मनीषा । धीष्णा । घी । प्रज्ञा । शेमुपी । मति । प्रेक्षा । चित् । चेतना । धारण । प्रतिपत्ति । मेधा । मन । मनस् । ज्ञान । बोध । प्रतिभा । विज्ञान । संख्या । मुहा॰—'बुद्धि' शब्द के मुहा॰ के लिये दे॰ 'अक्ल शब्द' ।

२. उपजाति वृत्त का चौजहवाँ भेद जिसे सिद्धि भी कहते हैं ।

३. एक छेद जिसके चारो पदों में क्रम से १६, १४, १४, १३ मात्राएँ होती है । इसे 'लक्ष्मी' भी कहते हैं ।

४. छप्पय का ४२ वाँ भेद ।