बोल
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]बोल ^१ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ बोलना]
१. मनुष्य के मुँह से उच्चारण किया हुआ शब्द या वाक्य । वचन । वाणी ।
२. ताना । व्यंग्य । लगती हुई बात । क्रि॰ प्र॰—सुनाना । मुहा॰—बोल मारना = ताना देना । व्यंग्य वचन कहना ।
३. बाजों का बाँधा या गठा हुआ शब्द । जैसे, तबले का बोल, सितार का बोल ।
४. कही हुई बात या किया हुआ वादा । कथन या प्रतिज्ञा ।—जैसे, उसके बोल का कोई मोल नहीं । मुहा॰—(किसी का) बोलबाला रहना = (१) बात की साख बनी रहना । बात स्थिर रहना । बात का मान होते जाना । (२) मान मर्यादा का बना रहना । भाग्य या प्रताप काट बना रहना । बोलबाला होना = (१) बात की साख होना । बात का माना जाना या आदर होना । (२) मान मर्यादा की बढ़ती होना । प्रताप या भाग्य बड़कर होना । (३) प्रसिद्बि होना । कीर्ति होना । (किसी का) बोल रहना = साख रहना । मान मर्यादा रहना । इज्जत रहना ।
५. गीत का टुकड़ा । अंतरा ।
६. अदद । संख्य़ा (विशेषतः बायन में आई हुई वस्तुओं के संबंध में स्त्रियाँ बोलती है) । जैसे,—सौ बोल आए थे, चार चार लड़्डू बाँट दिए ।
बोल † ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ बोल] कथन । वार्ता । कथा । उ॰— (क) ससनेही सयणाँ तणाँ कलि मा रहिया बोल ।—ढोला॰, दू॰ ६७५ । (ख) धी को बोल नूँ मानीयो बाप ।—बी॰ रासो॰, पृ॰ २४ ।
बोल ^३ संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का सुगंधित गोंद जो स्वाद में कड़ुआ होता है । यह गूगल की जाति के एक पेड़ से निकलता है जो अरब में होता है ।