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भारी

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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भारी वि॰ [सं॰ भारिन्, भार + ई]

१. जिसमें भार हो । जिसमें अधिक बोझ हो । गुरु । बोझिल । उ॰—(क) लपटहिं कोप पटहिं तरवारी । औ गोला ओला जस भारी ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) भारी कहो तो नहिं डरूँ हलका कहूँ तो झीठ । मैं क्या जानूँ राम को नैना कछू न दीठ ।—कबीर (शब्द॰) । मुहा॰—पेट भारी होना =पेट में अरुच होना । खाए हुए पदार्थों का ठीक तरह से न पचना । पेट भारी होना =गर्भिणी होना । पेट से होना । सिर भारी होना = सिर में पीड़ा होना । गला या आवाज भारी होना वा भारी पड़ना =गला पड़ना । गला बैठना । मुँह से ठीक आवाज न निकलना । भारी रहना =(१) नाव का रोकना (मल्लाह) । (२) धीरे चलना (कहार) ।

२. असह्य । कठिन । कराल । भीषण । उ॰— (क) भरि भादों दुपहर अति भारी । कैसे रैन अँधियारी । — जायसी (शब्द॰) । (ख) पुनि नर राव कहा करि भारी । वोल्यो सभा बीच व्रतधारी । — गोपाल (शब्द॰) । (ग) गगन निहारि किलकारी भारी. सुनि हनुमान पहिचानि भए सानँद सचेत हैं ।— तुलसी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰— लगना ।

३. विशाल । बड़ा । वृहत् । महा । उ॰— (क) दीरघ आयु भूमिपति भारी । इनमें नाहिं पदमिनी नारी । — जायसी (शब्द॰) । (ख) जपहिं नाम जन आरति भारी । मिटहिं कुसँकठ होहिं सुखारी । — तुलसी (शब्द॰) । (ग) जैसे मिटइ मोर भ्रम भारी । कहहु सो कथा नाथ बिस्तारी ।— तुलसी (शब्द॰) । मुहा॰— बडा़ भारी = बहुत बहुत । भारी भरकम या भड़कम = बहुत बड़ा और भारी । जिसमें अधिक माल मसाला लगा हो और जो फलतः अधिक मूल्य का हो । बहमूल्य । जैसे; भारी जोड़ा, भारी गठरी ।

४. अधिक । अत्यंत । बहुत । उ॰— (क) तू कामिनी क्यौं धीर धरत है यह अचरज मोहिं भारी । — भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ २, पृ॰ ५१२ । (ख) छोंकर के वृक्ष पर बटुवा झुलाइ दियो, कियो जाय दरशन, सुख भयो भारिये । — भक्तमाल, पृ॰ ५१९ । (ग) यह सुनि गुरु बानी धनु गुन तानी जानी द्विज दुख दानि । ताड़ का सँहारी दारुण भारी नारी अतिबल जानि । — केशव (शब्द॰) ।

५. असह्य । दूभर । जैसे,— मेरा ही दम उन्हें भारी है । क्रि॰ प्र॰— पड़ना ।—लगना ।

६. सूजा हुआ । फूला हुआ । जैसे, सुँह भीर होना ।

७. प्रबल । जैसे,— वह अकेला दस पर भारी है ।

८. गंभीर । शांत । मुहा॰— भारी रहना = चुप रहना ।(दलाल) ।