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भाल

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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भाल ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. भवों के उपर का भाग । कपाल । ललाट । मस्तक । माथा । उ॰— (क) भाल गुही गुन लाला लटै लपटी लर मोतिन की सुखदेनी । — केशव (शब्द॰) । (ख) कानन कुंडल विशाल, गोरोचन तिलक भाल ग्रीवा छबि देखि देखि शोभा अधिकाई । (शब्द॰) ।

२. तेज ।

३. अंधकार । तम (को॰) ।

भाल ^२ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ भाला]

१. भाला । बरछा । उ॰— (क) भाल बाँस खाँड़े वह परहीं । जान पखाल बाज के चढ़हीं ।— जायसी (शब्द॰) । (ख) भलपति बैठ भाल लै और बैठ धनकार । — जायसी (शब्द॰) ।

२. तीर का फल । तीर की नोक । गाँसी । उ॰— खौरि पनिच भृकुटी धनुष बधिक समरु तजि कानि । हनतु तरुन मृग तिलक सर सुरक भाल भरि तानि । — स॰ सप्तक, पृ॰ ६९ ।

भाल ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ भल्लुक] रीछ । भालू । उ॰— तहाँ सिंह बहु श्वान बृक सर्प गीध अरु भाल । — विश्राम (शब्द॰) ।