भृंग
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]भृंग सज्ञा पुं॰ [सं॰ भृङ्ग]
१. भौरा । भ्रमर ।
२. भृंगराज । भँगरा [को॰] ।
३. कलिंग या भृंगराज नाम का पक्षी [को॰] ।
४. छिछोरा । लंपट । भ्रमर [को॰] ।
५. एक स्वर्णपात्र । भृंगार । झारी [को॰] ।
६. गुड़त्वच । दारचीनी [को॰] ।
७. अभ्रक [को॰] ।
८. एक प्रकार का कीड़ा । जिसे, बिलनी भी कहते है । उ॰—(क) भइ मति कीट भृंग की नाई । जहँ तहँ मैं देखे रघुराई ।— तुलसी (शब्द॰) । (ख) कीठ भृंग ऐसे उर अंतर । मन स्वरूप करि देत निरतर ।— लल्लू (शब्द॰) । विशेष—इसके विषय में यह प्रसिद्ध है कि यह किसी कीड़े के ढोले को पकड़कर ले आता है और उसे मिट्टी से ढक देता है; और उसपर बैठकर और डँक मार मारकर इतनी देर तक और इतने जोर से 'भिन्न भिन्न' शब्द करता है कि वह कीड़ा इसी की तरह हो जाता है ।