मकर
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]मकर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. मगर या घड़ियाल नामक प्रसिद्ध जलजतु । यह कामदेव की ध्वजा का चिह्न और गंगा जी तथा वरुण का वाहन माना लाता है ।
२. बारह राशियों में से दसवीं राशि जिसमें उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के अंतिम तीन पाद, पूरा श्रवण नक्षत्र और धनिष्ठा के आरभ के दो पाद हैं । विशेष—इसे पृष्ठोदय, दक्षिण दिशा का स्वामी, रूक्ष, भूमि- चारी, शीतल स्वभान और पिंगल वर्ण का, वैश्य, वातप्रकृति और शिथिल अगोंवाला मानते हैं । ज्योतिष के अनुसार इस जाति में जन्म लेनेवाला पुरुष परस्त्री का अभिलाषी, धन उड़ानेवाला, प्रतापशाली, बातचीत में बहुत होशियार, बुद्धिमान और वीर होता है ।
३. फलित ज्योतिष के अनुसार एक लग्न ।
४. सुश्रुत के अनुसार कीड़ों और छोटे जीवों का एक वर्ग ।
५. कुबेर की नव निधियों में से एक ।
६. अस्त्र शस्त्र को निष्फल बनाने के लिये उनपर पढ़ा जानेवाला एक प्रकार का मंत्र ।
७. एक पर्वत का नाम ।
८. एक प्रकार का ब्यूह जिसमें सैनिक लोग इस प्रकार खड़े किए जाते हैं कि उनकी समष्टि मकर के आकार की जान पड़ती है ।
९. माघ मास । मकर संक्रांति का महीना । उ॰—अहो हरि नीको मकर मनाए ।—भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ ३, पृ॰ ४४१ ।
१. मछली । उ॰—श्रुति मंडल कुंडल विधि मकर सुविलसत सदन सदाई ।—सूर (शब्द॰) ।
११. छप्पय के उनतीसवें भेद का नाम जिसमें ३२ गुरु, ८८ लघु १२० वर्ण या १५२ मात्राएँ अथवा ३२ गुरु, ८४ लघु, १६६ वर्ण, कुल १४८ मात्राएँ होती हैं ।
मकर ^२ सज्ञा सं॰ [फा॰ मकर, मक्र]
१. छल । कपट । फरेब । धोखा । उ॰—करहु बदगी असल करारा । सो तजि का तुम्ह मकर पसारा ।—संत॰ दरिया, पृ॰ २२ ।
२. नखरा । उ॰—काम करते हैं मकर का किसलिये । इस मकर से प्यार प्यारा है कहो ।—चोखे॰, पृ॰ २४ । क्रि॰ प्र॰—रचना ।—फैलाना ।