मटर
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]मटर संज्ञा पुं॰ [सं॰ मधुर] एक प्रकार का मोटा द्विदल अन्न । विशेष—यह वर्षा या शरद् ऋतु में भारत के प्रायः सभी भागों में बोया जाता है । इसके लिये अच्छी तरह और गहरी जोती हुई भूमि और खाद की आवश्यकता होती है । इसमें एक प्रकार की लंबी फलियाँ लगती हैं जिन्हें छीमी या छींबी कहते हैं और जिनके अंदर गोल दाने रहते हैं । आरंभ में ये दाने बहुत ही मीठे और स्वादिष्ट होते हैं और प्रायः तरकारी आदि के काम में आते हैं । जब फलियाँ पक जाती हैं, तब उनके दानों से दाल बनाई जाती है अथवा रोटी के लिये उसका आटा पीसा जाता है । कहीं कहीं इसका सत्तू गी बनता है । इसकी पत्तियाँ और डठल पशुओं के चारे के लिये बहुत उपयोगी होते है । यह दो प्रकार का होता है । एक को दुबिया और दूसरे को काबुली मटर या केराव कहते हैं । वैद्यक में इसे मधुर, स्वादिष्ट शीतल, पित्तनाशक, रुचिकारक, वातकारक, पुष्टिजनक, मल को निबारनेवाला और रक्तविकार को दूर करनेवाला माना है । पर्या॰—कलाब । मुंडचणक । हरेणु । रेणुक । संदिक । त्रिपुट । अतिवर्तुल । शमन । नोलक । कंटी । सतील । सतीनक । यौ॰—मटर चूड़ा़ या चूड़ा़ मटर=हरे मटर की फलियों के मुलायम दाने और चिउड़े के साथ बनी खिचड़ी जिसमें पानी नहीं डालते भाप और घी से पकाते हैं । मटरबोर ।