मड़ुआ
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]मड़ुआ संज्ञा पुं॰ [देश॰]
१. बाजरे की जाति का एक प्रकार का कदन्न । विशेष—यह अन्न बहुत प्राचीन काल से भारत में बोया जाता है; और अबतक अनेक स्थानों में जंगली दशा में भी मिलता है । यह वर्षा ऋतु में खाद दी हुई भूमि में कभी कभी ज्वार के साथ और कभी कभी अकेला बोया जाता है; मैदानों में इसकी देखरेख की विशेष आवश्यकता होती है; पर हिमालय की तराई में यह अधिकांश में आपसे आप ही तैयार हो जाता है । अधिक वर्षा से इसकी फसल को हानि पहुँचती है । यदि इसकी फसल तैयार होने पर भी खेतों में रहने दी जाय, तो विशेष हानि नहीं होती । फसल काटने के उपरांत इसके दाने वर्षों तक रखे जा सकते हैं; और इसी कारण अकाल के समय गरीबों के लिये इसका बहुत अधिक उपयोग होता है । इसे पीसकर आटा भी बनाया जाता है और यह चावलों आदि के साथ भी उबालकर खाया जाता है । इससे एक प्रकार की शराब भी बनती है । वैद्यक में इसे कसैला, कड़आ, हलका, तृप्तिका रक, बलवर्धक, त्रिदोष- निवारक और रक्तदोष को दूर करनेवाला माना है । पर्या॰—वटक । स्थूलकंगु । रूक्ष । स्थूलप्रियंगु ।
२. एक प्रकार का पक्षी ।