मनी
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]मनी लभ्भी फुनिंद, अग्गेव सरद निसि उग्गि चंद ।—पृ॰ रा॰, १ ।६२२ ।
मनी पु ^१ संज्ञा स्त्री॰ [फ़ा॰ तुल॰ हिं॰ मान (= अभिमान) ] अहंकार । उ॰—(क) होये भलो ऐसे ही अजहुँ गए राम सरन परिहरि मनी । भुजा उठाइ साखि संकर करि कसम खाइ तुलसी भनी ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) मति समान जाके मनी नैकि न आवत पास । रसनिधि भावक करत है ताही मन में वास ।—रसनिधि (शब्द॰) ।
मनी ^२ वि॰ घमंडी । अभिमानी । उ॰—मनी मारे गर्व गाफिल वेमेहर बेपीर वे ।—रै॰ बानी, पृ॰ ३२ ।
मनी ^३ संज्ञा स्त्री॰ [अ॰] धातु । शुक्र । वीर्य ।
मनी पु ^४ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ मणि] दे॰ 'मणि' । दे॰ 'मणि' ।
मनी ^५ संज्ञा पुं॰ [अं॰] रुपया पैसा । सिक्का ।