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मसूर

विक्षनरी से


प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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मसूर संज्ञा पुं॰ [सं॰] एक प्रकार का अन्न जो द्विदल और चिपटा होता है और जिसका रंग मटमैला होता है । मसूरी । विशेष— प्रायः इसकी दाल बनती है जो गुलाबी रंग को और अरहर की दाल से कुछ छोटी और पतली होती है । पकाने पर इसका भी रंग अरहर की दाल का सा हो जाता है । यह दाल बहुत ही पुष्टिकारक समझी जाती है । इसे प्रायः नीची जमीनों में,जहाँ पानी ठहरता है, खाली खेतों में अथवा धान के खेतों में बोते हैं । इसकी कच्ची फलियाँ भी खाई जाती हैं तथा इसकी सूखी पत्तियाँ और डंठल चारे के काम में भी आते हैं । वैद्यक में इसे मधुर, शीतल, संग्रहक, कफ और पित्त का नाशक तथा ज्वर को दूर करनेवाला माना है । द्विजों में कुछ लोग इसका खाना कदाचित् इसलिये अच्छा नहीं समझते कि इसके नाम का 'मांस' शब्द के साथ कुछ मेल मिलता है । पुराणों में रविवार के लिये इसका खाना नितांत वर्जित किया गया है । पर्या॰— सांगल्यक । व्रीहिकांचन । पृथुबीजक । शूर । कल्याणबीज । मसूरिका । यौ॰—मसूर का सत्त =भूने मसूर का आटा मीठा या नमक मिलाकर पानी में घोलकर खाया जाता है ।