मूर
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]मूर पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ मूल]
१. मूल । जड़ ।
२. जड़ी ।
३. मूलधन । असल । उ॰—(क) दरस सूर देती नहीं जौ लौं मीत चुकाय । बिरह व्याज वाको अरे नितहू बाढ़त जाय ।— रसनिधि (शब्द॰) । (ख) कोई चले लाभ सों कोई सूर गँवाय ।—जायसी (शब्द॰) । (ग) चल्यौ बनिक जिमि सूर गँवाई ।—तुलसी (शब्द॰) ।
४. मूल नामक नक्षत्र । उ॰— काहे चंद घटत है काहे सूरज पूर । काहे होई अमावस काहे लागे सूर ।—जायसी (शब्द॰) ।
४. अफ्रिका में रहनेवाली एक जाति ।