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मोर

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मोर
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संज्ञा

एक प्रकार का पक्षी (पु॰)

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

मोर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ मयूर, प्रा॰ मोर] [स्त्री॰ मोनी]

१. एक अत्यंत सुंदर बड़ा पक्षी । मयूर । बहीं । उ॰—भादव मास बरिस घनघोर । सभ दिस कुहकए दादुल मोर ।—विद्यापति, पृ॰ १३१ । विशेष—यह पक्षी प्रायः चार फुट लंबा होता है और इसकी लंबी गर्दन और छाती का रंग बहुत ही गहरा और चमकीला नीला होता है । नर के सिर पर बहुत ही सुंदर कलगी या चोटी होती है । पंख छोटे तथा पुँछ लंबी और अत्यंत सुंदर होती है । नर जिस समय प्रसन्न होता है, उस समय अपनी पुँछ के पर खड़े करके मंडलाकार फैला देता है, जिससे वह बहुत ही सुंदर जान पड़ता है । पुँछ के परों पर बहुत सुंदर गोल दाग या चित्तियाँ होती है, जिनका रंग नीला होता है और जिनपर सुंदर सुनहरा मंडल होता है । इन्हें चंद्रिका कहते हैं । मोर सब पक्षियों से सुंदर पक्षी है । अनेक चटकीले रंगों का जैसा सुंदर मेल इसमें होता है, वैसा और किसी पक्षी में नहीं होता । प्राचीन युनानी और रोमन इसे बहुत पवित्र मानते थे । राजपूताने में अब तक कोई इसकी हत्या नहीं करता । इसका स्वभाव है कि बादलों की गरज सुनते ही यह कूकता है । संस्कृत में इसका एक नाम भुजंगभुक् है । कहते हैं , यह साँप को खा जाता है । मादा का रंग फीका होता है और वह देखने में वैसों सुंदर नहीं होती । पर्या॰—नीलकंठ । केकी । बरही । शिखी । शिखंडी । कलापी । शिवपुतवाहन । भुजंगभुक् । अहिभक्षी ।

२. नीलम की आभा, जो मोर के पर के समान होती है । उ॰— मोर, विष्णु, नभ, कमल, अलि, कोकिल, कलरव, मेह । फुल सिरस, अरसी, अवनि ग्यारह छाया एह ।—रत्नपरीक्षा । (शब्द॰) ।

मोर पु † ^२ सर्व॰ [सं॰ मम] [स्त्री॰ मोरी] दे॰ 'मेरा' । उ॰— (क) मोर हृदय सत सुलिस समाना ।—मानस, २ ।१६६ । (ख) खुले सुभाग्य मोरयँ, लह्यौ दरस्स तोरयं ।—ह॰ रासो, पृ॰ १३ ।

मोर ^३ संज्ञा स्त्री॰ [डिं॰] सेना की अगली पंक्ति ।