रबड़
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]रबड़ ^१ संज्ञा पुं॰ [अं॰ रबर]
१. एक प्रसिद्ध लचीला पदार्थ जिसका व्यवहार गेंद फोता, पट्टी, बेलन आदि बहुत से पदार्थ बनाने में होता है । विशेष—यह एक प्रकार के वुक्ष के ऐसे दुव से बनता है, जो पेड़ से निकलने पर जम जाता है । यह चिमड़ा और लचीला होता है । इसमे रासायनिक अंश कार्बन और हाइड्रोजन के होते है । यह २४८? को आँच पाकर पिघल जाता है और ६००? की आँच में भाप के रूप में उड़ने लगाता है । आग पाने से यह भक से जलने लगता है । इसकी लौ चमकीली होती है और इसमें से धूआँ अधिक निकलता है । जब इसमें गंधक का फूल (बारीक चुर्ण) या उडाई हुई गंधक मिलाकर इसे घीमी आँच में पिघलाकर २५०? से लेकर ३००? की भाप में सिद्घ करते हैं, तब इससे अनेक प्रकार की चीजें जैसे,— खिलौने, बटन, कंधी आदि बनाई जाती है, जो देखने में सींग या हड्डी की जान पड़ती है । इसपर सब प्रकार के रंग भी चढ़ाए जाते हैं । रबड़ अफ्रीका, अमेरिका और एशिया के प्रदेशों में भिन्न भिन्न विशेष पेड़ों के दुध से बनाया जाता है और वहाँ इससे अनेक प्रकार के उपयोगी पदार्थ बनाए जाते है । अब इसे रासायनिक ढ़ंग से कृत्रिम भी बनाया जाता है ।
२. एक वृक्ष का नाम जो वट वर्ग के अंतर्गत है । विशेष—यह भारतवर्ष में आसाम, लखीमपुर आदि हिमालय के आस पास के प्रदेशों तथा बरमा आदि में होता है । इसकी पत्तियाँ चौड़ी और बड़ी बड़ी होती है तथा इसका पेड़ ऊँचा और दीर्धाकार होता है । इसकी लकडी़ मजबूत और भूरे रंग की होती है । इसी के दुघ से उपर्युक्त पदार्थ बनता है ।
रबड़ ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हि॰ रगड़ा]
१. व्यर्थ का श्रम । फजूल हैरानी ।
२. गहरा श्रम । रगड़ । क्रि॰ प्र॰—खाना ।—पड़ना ।
३. तै करने के लिये अधिक दूरी । घुमाव । चक्कर । फेर । जैसे,— उधर से जाने मे बड़ी रबड़ पड़ेगी ।