रसना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]रसना ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. जिह्वा । जीभ । जवान । यौ॰— रसनामल=जीभ की मैल । रसनामूल=जीभ का मूल भाग । रसानारद=दे॰ 'रसानारव' । रसनालिह=श्वान । कुत्ता । मुहा॰— रसना खोलना=बोलना आरंभ करना । उ॰— हीरामन रसना रस खोला । दै असीस करि अस्तुति बोला ।— जायसी (शब्द॰) । रसना तालू (तारू) से लगाना=बोलना बंद करना । चुप होना । उ॰— रसना तारू सो नहि लावत पीवै पीव पुकारत ।—सूर (शब्द॰) ।
२. न्याय के अनुसार रस या स्वाद, जिसका अनुसार रसना या जीभ से किया जाता है ।
३. रास्ना या नागदौनी नाम की ओषधि ।
४. गंधभद्रा नाम की लता ।
५. करधनी । मेखला ।
६. रस्सी । रज्जु ।
७. लगाम ।
८. चंद्राहार ।
रसना ^२ क्रि॰ अ॰ [हिं॰ रस+ना (प्रत्य॰)]
१. धीरे धीरे बहना या टपकना । जैसे,— छत में से पानी रसना ।
२. गीला होकर या पानी से भरकर धीरे धीरे जल यौ और कोई द्रव पदार्थ छोड़ना या टपकाना । जैसे,— चंद्रकांत मणि चंद्रमा को देखकर रसने लगती है । मुहा॰— रस रस या रसे रसे=धीरे धीरे । आहिस्ते आहिस्ते । शनैः शनैः । उ॰—(क) रस रस सूख सरित सर पानी । ममता ज्ञान करहिं जिमि ज्ञानी ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) चंचलता अपनी तजिकै रस ही सों रस सुंदर पीजियो ।— परताप (शब्द॰) ।
३. रस में मग्न होना । रस से पूर्ण होना । प्रफुल्लित होना । उ॰— सूर प्रभु नागरी हँसति मन मन रसति बसत मन श्याम बंड़े भागे ।—सूर (शब्द॰) ।
४. तन्मय होना । परिपूर्ण होना । उ॰— (क) चंपकली दल हूँ ते भली पद अँगुलि बाल की रूप रसे है । —केशव (शब्द॰) । (ख) बाँक विभूषण प्रेम ते जहाँ होहिं विपरीत । दर्शन रस तन मन रसत गनि विभ्रम के गीत । —केशव (शब्द॰) ।
५. रसपान करना । रस लेना । उ॰— शिवपूजन हित कनक के कुसूम रसत अलिजाला । मयन नृपति जग जीत की बजी मनौ करनाल ।—गुमान (शब्द॰) ।
६. प्रेम में अनुरक्त होना । मुहब्बत में पड़ना । उ॰— (क) किन सँग रसलु किन सँग बसलू किन सँग रचलू धमार ।— कबीर (शब्द॰) । (ख) तब गोपी रस रसी राम किरपा द्विज- राजी ।— सुधाकर (शब्द॰) ।