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रावण

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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रावण ^१ वि॰ [सं॰] जो दूसरों को रुलाता हो । रुलानेवाला ।

रावण ^२ संज्ञा पुं॰

१. लंका का प्रसिद्ध राजा जो राक्षसों का नायक था और जिसे युद्ध में भगवान् रामचंद्रा ने मारा था । विशेष—एक बार लंका में राक्षसों के साथ विष्णु का घोर युद्ध हुआ था जिसमें राक्षस लोग परास्त होकर पाताल चले गए थे । उन्हीं राक्षसों में सुमल्ली नामक एक राक्षस था, जिसको कैकसी नाम की कन्या बहुत सुंदरी थी । सुमाली ने सोचा कि इसी कन्या के गर्भ से पुत्र उत्पन्न करा के विष्णु से बदला लेना चाहिए; इसी लिये उसने अपनी कन्या को पुलत्स्य के लड़के विश्रवा के पास संतान उत्पन्न कराने को भेजा । विश्रवा के वीर्य से कैकसी के गर्भ से पहला पुत्र यही रावण हुआ जिसके दश सिर थे । इसका रूप बहुत ही विकराल और स्वभाव बहुत ही क्रूर था । इसके उपरांत कैकसी के गर्भ से कुंभकर्ण और विभीषण नाम के दो और पुत्र तथा शूर्षणखा नाम की एक कन्या हुई । एक दिन अपने वैमात्रेय कुबेर को देखकर रावण ने प्रतिक्षा की कि मै भी इसी के समान संपन्न और तेजवान् बनूँगा । तदनुसार वह अपने भाइयों को साथ लेकर घोर तपस्या करने लगा । दस हजार वर्ष तक तपस्या करने के उपरांत भी मनोरथ सिद्ध होता न देखकर इसने अपने दसों सिर काटकर अग्नि में डाल दिया । तब ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर इसे वर दिया कि दैत्य, दानव, यक्ष आदि में से कोई तुम्हें मार न सकेगा । तब सुमाली न रावण से कहा कि अब तुम लंका पर अधिकार करो । उस समय लंका पर कुबेर का अधिकार था । रावम का बहुत जोर देखकर विश्रवा की आज्ञा से कुबेर तो लंका पर अधिकार कर लिया तथा मय दानव की कन्या मंदोदरी से विवाह कर लिया । इसी मदोदरी के गर्भ से मेघनाद का जन्म हुआ । ब्रह्मा के वर के प्रभाव से रावण ने तीनों लोक जीत लिए और ईंद्र, कुबेर, यम आदि को परास्त कर दिया । अब इसका अत्याचार बहुत बढ़ गया । यह सबको सताने लगा और लोगों की कन्याओं तथा पत्नियों का हरण करने लगा । एक बार सहस्त्रार्जुन ने इसे युद्ध में परास्त करेक कैद कर लिया था, पर पुलस्त्य के कहने पर छोड़ दिया । बाली से भी यह एक बार बुरी तरह परास्त हुआ था । जिस समय भगवान् रामचंद्र अपने साथ लक्ष्मण और सीता को लेकर दंडकारण्य में वनवास का समय बिता रहे थे, उस समय यह सीता को एकातं में पाकर छल से उठा लाया था । तब रामचद्र ने समु्द्र पर सेतु बाँधकर लंका पर चढ़ाई की और इसके साथ घोर युद्ध करेक अंत में मार डाला और इसके अत्याचार से पृथ्वी की रक्षा की ।