रीति
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]रीति संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. कोई कार्य करने का ढंग । प्रकार । तरह । ढब । उ॰— जाति मुरी बिछुरत घरी जल सफरी की रीति । —बिहारी (शब्द॰) ।
२. रस्म । रिवाज । परिपाटी । उ॰— (क) मतलब मतलब प्यार सों तन मन दै कर प्रीति । सुनी सनेहिन मुख यहै प्रेम पंथ की रीति । —रसनिधि (शब्द॰) । (ख) रघुकुल रीति सदा चलि आई । प्राण जाहिं वरु वचन न जाई ।—तुलसी (शब्द॰) ।
३. कायदा । नियम ।
४. साहित्य में किसी विषय का वर्णन करने में विशिष् पदरचना अर्थात् वर्णों की वह योजना जिससे आज, प्रसाद या माधुर्य आता है ।
५. पीतल ।
६. लोहे की मैल । मंडूर ।
७. जले हुए सोने की मैल ।
८. सीसा ।
९. गति ।
१०. स्वभाव ।
११. स्तुति । प्रशंसा । यौ॰—रीतिकाल=हिंदी साहित्य के इतिहास का वह काल जब रीति ग्रंथों की रचना विशेष रुप से होती थी । रीतिग्रंथ, रीतिशास्त्र=वे लक्षणग्रंथ जिनमें नायिकाभेद, नखसिख, अलंकार आदि का लक्षण एव सोदाहरण विवेचन किया गया हो ।