लता
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]लता संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. वह पौधा जो सूत या डोरी के रुप में जमीन पर फैले अथवा किसी खड़ी वस्तु के साथ लिपटकर ऊपर की ओर चढ़े । वल्ली । वेल । वौंर । विशेष— जिस लता में बहुत सी शाखाएँ इधर उधर निकलती है और पत्तियाँ का झापस होता है, उसे संस्कृत में प्रतालिनी कहते हैं ।
२. कोमल कांड या शाखा । जैसे,— पद्यलता । विशेष— सौंदर्य, कोमलता और सुकुमारता का सूचक होने के कारण 'बाहु' या 'भुज' शब्द के साथ कभी कभी 'लता' शब्द लगा दिया जाता है । जैसे,—बहुलता, भुजलता । सुंदरी स्त्री के लिये भी 'कंचनलता', 'कनकलता', 'कामलता', हेमलता' आदि शब्दों का प्रयोग होता है । जैसे,— (क) गहि शशिवृत्त नरिंद सिढ़ी लंघत ढहि थोरी । कामलता कल्हरी प्रेम मारुत झकझोरी । —पृ॰ रा॰, २५ । ३८१ । (ख) मानो किलता कचन लहरि मत्ता वीर गजराज गहि । —पृ॰ रा॰, २५ । ३७४ ।
३. प्रियंगु ।
४. स्पृक्का ।
५. अशनपर्णी ।
६. ज्योतिष्मती लता ।
७. माधवी लता ।
८. दूर्वा । दूव ।
९. कैवर्तिका ।
१०. सारिवा ।
११. जातिपुष्प का पौधा ।
१२. सुंदरी स्त्री । कृशोदरी ।
१३. मोतिया की लरी (को॰) ।
१४. केशाघात या चावुक । कोड़ा (को॰) ।
लता संज्ञा पुं॰ [देश॰]
१. एक पेड़ जिससे पंजाब में सज्जी निकाली जाती है । इसका एक भेद 'गोरानला' है ।
२. शोरा ।