वरुण
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]पर्याय
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]वरुण संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. एक वैदिक देवता जो जल का अधिपति, दस्युओं का नाशक और देवताओं का रक्षक कहा गया है । पुराणों में वरुण की गिनती दिक्पालों में है और वह पश्चिम दिशा का अधिपति माना गया है । वरुण का अस्र पाश है । विशेष—बहुत प्राचीन वैदिक काल में वरुण प्रघान देवता थे; पर क्रमशः उनकी प्रधानता कम होती गई और इंद्र को प्रधानता प्राप्त हुई । वरुण अदिति के आठ पुत्रों में कहे गए हैं । निरुक्तकार इन्हें द्वादश आदित्यों में बतलाते हैं । ऋग्वेद में वरुण के अनेक मंत्र हैं, जिनमें से कुछ के संबंध में ऐतरेय ब्राह्मण में शुनः- शेफ की प्रसिद्ध गाथा है । इसके अनुसार 'हरिश्चंद्र वैधस' नामक एक राजा ने पुत्रप्राप्ति के लिये वरुण की उपासना की । वरुण ने पुत्र दिया, पर यह वचन लेकर कि उसी पुत्र से तुम मेरा यज्ञ करना । पुत्र का नाम रोहित हुआ । जब वह कुछ बड़ा हुआ और उसे यह पता चला कि मुझे वरुण के यज्ञ में बलिपशु बनना पड़ेगा; तब वह जंगल में भाग गया । वहाँ उसे इंद्र घर लौटने को बराबर मना करते रहे । अंत में राजा ने अजीगर्त नामक एक ऋषि को सौ गौएँ देकर उनके पुत्र शुनःशेफ को बलि के लिये मोल लिया । जब शुनःशेफ यूप में बाँधा गया, तब वह अपने छुटकारे के लिये प्रजापति, अग्नि, सविता आदि कई देवताओं की स्तुति करने लगी । अंत में वरुण की स्तुति करने से उसका उद्धार हुआ । ऋग्वेद में वरुण के कुछ मंत्र वे ही हैं, जिन्हें पढ़कर शुनःशेफ ने स्तुति की थी । पुराणों में वरुण कश्यप के पुत्र कहे गए हैं । भागवत में लिखा है कि चर्षली नाम्नी पत्नी से रुण को भाद्र और वाल्मीकि नामक दो पुत्र हुए थे । वरुण अब तक जल के देवता माने जाते हैं और जलाशयोत्सर्ग में इनका पूजन होता है । साहित्य में ये करुण रस के अधिष्ठाता माने गए हैं । पर्या॰—प्रचेतस । पाशी । यादशांपति । अंपति । अंप्पति । यादः पति । अपांपति । जंबूक । मेघनाद । परंजय । वारिलोम । कुंडली ।
२. बरुना का पेड़ ।
३. जल । पानी ।
४. समुद्र (को॰) ।
५. आकाश (को॰) ।
६. सूर्य ।
७. एक ऋषि का नाम ।
८. एक ग्रह का नाम जिसे अँगरेजी में 'नेपचून' कहते हैं । (आधुनिक) ।