वीर
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]वीर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. वह जो साहसी और बलवान् हो । शूर । बहादुर ।
२. योद्धा । सैनिक । सिपाही ।
३. वह जो किसी विकट परिस्थिति में भी आगे बढ़कर उत्तमतापूर्वक अपने कर्तव्य का पालन करे ।
४. वह जो किसी काम में और लोगों से बहुत बढ़कर हो । जैसे,—दानवीर, कर्मवीर ।
५. पुत्र । लड़का ।
६. पति । खसम ।
७. भाई (स्त्रियाँ) ।
८. महाभारत के अनुसार दनायु नामक दैत्य के पुत्र का नाम ।
९. विष्णु ।
१०. जिन
११. साहित्य में श्रृंगार आदि नौ रसों मे से एक रस । विशेष—इसमें उत्साह और वीरता आदि की परिपु्ष्टि होती है । इसका वर्ण गोर और देवता इंद्र माने गए हैं । उत्साह इसका स्थायी भाव है और धृति, माति, गर्व, स्मृति, तर्क और रोमांच आदि इसके संचारी भाव हैं । भयानक, शांत और श्रृंगार रस का यह रस विरोधी है ।
१२. तांत्रिकों के अनुसार साधना के तीन भावों में से एक भाव । विशेष—कहते हैं, दिन के पहले दस दंड में पशु भाव से, बीच के दस दंड में वीर भाव से और अंतिम दस दंड में दिव्य भाव से साधना करनी चाहिए । रुद्रयामल के ग्यारहवें पटल में इसका विवरवण है । वामकेश्वर तंत्र के अनुसार कुछ लोगों का यह भी मत है कि पहले
१६. वर्ष की आयु तक पशु भाव से, फिर
५०. वर्ष की आयु तक वीर भाव से और इसके उपरांत दिव्य भाव से साधना करनी चाहिए ।
१३. तांत्रिकों के अनुसार वह साधक जो इस प्रकार वीर भाव से साधना करता है । विशेष—दिन रात मद्य पीना, पागलों की सी चेष्टा रखना, शरीर में भस्म लगाए रहना ओर अपने इष्टदेव को मनुष्य, बकरी, भेड़े या भैसे आदि का बलिदान चढ़ाना इनका मुख्य कर्तव्य होता है ।
१४. वह जो किसी काम में बहुत चतुर हो । होशियार ।
१५. कर्मठ । कर्मशील ।
१६. यज्ञ की अग्नि ।
१७. सींगिया नामक विष ।
१८. काली मिर्च ।
१९. पुष्करमूल ।
२०. काँजी ।
२१. खस । उशीर ।
२२. आलूबुखारा ।
२३. पीली कटसरैया ।
२४. चौलाई का साग ।
२५. वाराहीकंद । गेंठी ।
२६. लताकरंज ।
२७. कनेर ।
२८. अर्जुन नामक वृक्ष ।
२९. काकोली ।
३०. सिंदूर ।
३१. शालिपर्णी । सरिवन ।
३२. लोहा ।
३३. नरसल । नरकट ।
३४. भिलावाँ ।
३५. कुश ।
३६. ऋषमक नामक ओषधि ।
३७. तोरई ।
३८. अग्नि (को॰) ।
३९. नट । अभिनेता (को॰) ।
४०. चावल का माँड़ (को॰) ।
वीर ^२ वि॰
१. शूर । बहादुर ।
२. शक्तिशाली । ताकतवर
३. श्रेष्ठ । सर्वोत्कृष्ट [को॰] ।
वीर पु ^३ संज्ञा स्त्री॰ सखी । सहेली । दे॰ 'बीर' ।