वेताल
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]वेताल संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. द्वारपाल । संतरी ।
२. शिव के एक गणा- धिप ।
३. पुराणों के अनुसार भूतों की एक प्रकार की योनि । बैताल । उ॰—गुटिका, पादुका, रस, परस, खहु, वेताल, यक्षिणी आठहु ये उपसिद्धि तें समन्वित ।—वर्ण॰, पृ॰ ३ । विशेष—इस योनि के भूत साधारण भूतों के प्रधान माने जाते हैं । ये प्रायःश्मशानों आदि में रहते हैं ।
४. वह शव जिसपर भूतों ने अधिकार कर लिया हो ।
५. छप्पह के छठें भेद का नाम, जिसमें ६५ गुरु और २२ लघु, कुल ८७ वर्ण या १५२ मात्राएँ, अथवा ६५ गुरु और १८ लघु, कुल ८३ वर्ण या १४८ मात्राएँ होती है ।