सामग्री पर जाएँ

शक्ल

विक्षनरी से


प्रकाशितकोशों से अर्थ

[सम्पादन]

शब्दसागर

[सम्पादन]

शक्ल संज्ञा स्त्री॰ [अ॰] दे॰ 'शक्ल ^२' । मुहा॰—शक्ल चिड़ियों की नाज परियों का = हैसियत के बाहर गुमान रखना । उ॰—ऐसी तो सूरत भी नहीं पाई है बीबी, शक्ल चिड़ियों की नाज परियों का ।—फिसाना॰, भा॰३, पृ॰ १६ । शक्ल दिखाना = (१) मिलना । (२) सामने आना । शक्ल देखते रह जाना = (१) चकित होना ।

२. मुग्ध होना । शक्ल देखा करना = दे॰ 'शक्ल देखते रह जाना' । शक्ल न दिखाना = (१) न मिलना । (२) मुँह छिपाना । शक्ल पकड़ना = मूर्त होना । आकार ग्रहण करना । शक्ल पहचानना = (१) रुपरेखा से परिचित होना (२) देखकर चरित्र की बारीकियाँ जानना । शक्ल बनाना = असुंदर या विचित्र हो जाना । शक्ल बिगाड़ना = (१) चेहरे को कुरुप या विचित्र कर लेना । (२) पीटते पीटते मुँह सुजा देना ।