साँचा
संज्ञा
- एक प्रकार का उपकरण जिससे एक समान रूप वाले वस्तु का निर्माण होता है।
उदाहरण
- पुराने जमाने में भी सिक्कों आदि के लिए बहुत अच्छे साँचों का उपयोग किया जाता था।
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
साँचा संज्ञा पुं॰ [सं॰ स्थाता]
१. वह उपकरण जिसमें कोई तरल पदार्थ ढालकर अथवा गीली चीज रखकर किसी विशिष्ट आकार प्रकार की कोई चीज बनाई जाती है । फरमा । जैसे,—ईंटों का साँचा, टाइप का साँचा । उ॰—जैसे धातु कनक की एका । साँचा माही रुप अनेका ।—कबीर सा॰, पृ॰ १०११ । विशेष—जब कोई चीज किसी विशिष्ट आकार प्रकार की बनानी होती है, तब पहले एक ऐसा उपकरण बना लेते हैं जिसके अंदर वह आकार बना होता है । तब उसी में वह चीज डाल या भर दी जाती है, जिससे अभीष्ट पदार्थ बनाना होता है । जब वह चीज जम जाती हैं, तब उसी उपकरण के भीतरी आका र की हो जाती है । जैसे,—ईंट बनाने के लिये पहले उनका एक साँचा तैयार किया जाता है; और तब उसी साँचे में सुरखी, चूना आदि भरकर ईंटें बनाते हैं । मुहा॰—साँचे में ढला होना = (१) अंग प्रत्यंग से बहुत ही सुंदर होना । रुप और आकार आदि में बहुत सुंदर होना । उ॰—वह सरापा के साँचे में ढली थी ।—प्रेमघन, भा॰ २, पृ॰ ४५४ । (२) संवेदनाहीन । एक रस । एक रूप । उ॰— अच्छी कुंठारहित इकाई साँचे ढले समाज से ।—अरी ओ॰, पृ॰ ४ । साँचे में ढालना = बहुत सुंदर बनाना ।
२. वह छोटी आकृति जो कोई बड़ी आकृति बनाने से पहले नमूने के तौर पर तैयार की जाती है और जिसे देखकर वही बड़ी आकृति बनाई जाती है । विशेष—प्रायः कारीगर जब कोई बड़ी मूर्ति आदि बनाने लगते है, तब वे उसके आकार की मिट्टी चूने, 'प्लैस्टर आफ पेरिस' आदि की एक आकृति बना लेते हैं; और तब उसी के अनुसार धातु या पत्थर की आकृति बनाते हैं ।
३. कपड़ें पर बेल बूटा छापने का ठप्पा जो लकड़ी का बनता है । छांपा ।
४. एक हाथ लंबी लकड़ी जिसपर सटक बनाने के लिये सल्ला बनाते हैं ।
५. जुलाहों की वे दो लकड़ियाँ जिनके बीच में कूँच के साल को दबाकर कसते हैं ।