सिंहल
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]सिंहल संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. एक द्वीप जो भारतवर्ष के दक्षिण में है और जिसे लोग रामायणवाली लंका अनुमान करते है । विशेष—जान पड़ता है कि प्राचीन काल में इस द्वीप में सिंह बहुत पाए जाते थे, इसी से यह नाम पड़ा । रामेश्वर के ठीक दक्षिण पड़ने के कारण लोग सिंहल को ही प्राचीन लंका अनुमान करते हैं । पर सिंहलवासियों के बीच न तो यह नाम ही प्रसिद्ध है और न रावण की कथा है । सिंहल के दो इतिहास पाली भाषा में लिखे मिलते हैं—महाबंसो और दीपबंसो, जिनसे वहाँ किसी समय यक्षों की बस्ती होने का पता लगता है । रावण के संबंध में यह प्रसिद्ध है कि उसने लका से अपने भाई यक्षों को निकालकर राक्षसों का राज्य स्थापित किया था । बंग देश के विजय नामक एक राजकुमार का सिंहल विजय करना भी इतिहासों में मिलता है । ऐतिहासिक काल में यह द्वीप स्वर्णभूमि या स्वर्णद्वीप के नाम से प्रसिद्ध था, जहाँ दूर देशों के व्यापारी मोती और मसाले आदि के लिये आते थे । प्राचीन अरब स्वर्ण द्वीप को 'सरनदीब' कहते थे । रत्नपरीक्षा के ग्रंथों में सिंहल द्वीप मोती, मानिक और नीलम के लिये प्रसिद्ध पाया जाता है । भारतवर्ष के कलिंग, ताम्रलिप्ति आदि प्राचीन बंदरगाहों से भारतवासियों के जहाज बराबर सिंहल, सुमात्रा, जावा आदि द्वीपों की ओर जाते थे । गुप्तवंशीय चंद्रगुप्त (सन् ४०० ईसवी) के समय फाहियान नामक जो चीनी यात्री भारतवर्ष में आया था, वह हिंदुओं के ही जहाज पर सिंहल होता हुआ चीन को लौटा था । उस समय भी यह द्वीप स्वर्ण- द्वीप या सिंहल ही कहलाता था, लंका नहीं । इधर की कहानियों में सिंहलद्वीप पद्मिनी स्त्रियों के लिये प्रसिद्ध है । यह प्रवाद विशेषतः गोरखपंथी साधुओं में प्रसिद्ध है जो सिंहल को एक प्रसिद्ध पीठ मानते हैं । उनमें कथा चली आती है कि गोरखनाथ के गुरु मत्स्येंद्र नाथ (मछंदरनाथ) सिद्ध होने के लिये सिंहल गए, पर पद्मिनियों के जाल में फँस गए । जब गोरख- नाथ गए तब उनका उद्धार हुआ । वास्तव में सिंहल के निवासी बिलकुल काले और भद्दे होते हैं । वहाँ इस समय दो जातियाँ बसती हैं—उत्तर की ओर तो तामिल जाति के लोग और दक्षिण की ओर आदिम सिंहली निवास करते हैं ।
२. सिंहल द्वीप का निवासी ।
३. टीन । रंग । राँगा (को॰) ।
४. एक धातु पीतल (को॰) ।
५. छाल । वल्कल (को॰) ।
६. पीपर । पिप्पली (को॰) ।