सिल
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]सिल ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ शिला]
१. पत्थर । चट्टान । शिला । उ॰— धोवैं नीर उडप पग धरजै, रज सिल उठी, किसू वनदार ।—रघु॰ रू॰ पृ॰ ११० ।
२. पत्थर की बनी हुई एक प्रकार की चौकोर या लंबोतरी पटिया जिसपर बट्टे से मसाला आदि पीसते हैं । यौ॰—सिल बट्टा ।
३. पत्थर का गढ़ा हुआ चौकोर टुकड़ा जो इमारतों में लगता है । चौकोर पटिया ।
४. काठ की पटरी जिसपर दबाकर रूई की पूनी बनाई जाती है ।
सिल ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ शिल] कटे हुए खेत में गिरे अनाज चुनकर निर्वाह करने की वृत्ति । दे॰ 'शिल', 'शिलोंछ' ।
सिल ^३ संज्ञा पुं॰ [देश॰] बलूत की जाति का एक पहाड़ी पेड़ जो हिमालय पर होता है । बंज । मारू ।
सिल ^४ संज्ञा पुं॰ [अ॰] तपेदिक । राजयक्ष्मा । क्षय रोग ।