हूँ
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]हूँ ^१ अव्य॰ [अनु॰]
१. किसी प्रश्न के उत्तर में स्वीकारसूचक शब्द ।
२. समर्थनसूचक शब्द ।
३. एक शब्द जिसके द्वारा सुननेवाला यह सूचित करता है कि मैं कही जाती हुई बात या प्रसंग ध्यान से सुन रहा हूँ । दे॰ 'हूं' ।
हूँ ^२ अव्य॰ [सं॰ उप, प्रा॰ उव, हिं॰ ऊ] दे॰ 'हू' । उ॰—(क) ज्यों सब भाँति कुदेव कुठाकुर सेए वपु बचन हिये हूँ । त्योँ न राम सुकृतज्ञ जे सकुचत सकृत प्रनाम किये हूँ ।—तुलसी ग्रं॰, पृ॰ ५४४ । (ख) स्याम बलराम बिनु दूसरे देव को, स्वप्न हूँ माहिँ नहिँ हृदय ल्याऊँ ।—सूर॰, १ ।१६७ ।
हूँ ^३ क्रि॰ अ॰ वर्तमानकालिक क्रिया 'है' का उत्तम पुरुष, एकवचन का रूप । जैसे—'मैं हूँ' ।
हूँ पु सर्व॰ [सं॰ अहम्] अस्मद् शब्द का उत्तम पुरुष एकवचन सर्वनाम । मैं । अहम् । उ॰—(क) हूँ कुँमलाणी कंत बिण जलह बिहूँणी वेल ।—ढोला॰, दू॰ १६३ । (ख) हूँ बलिहारी सज्जणाँ सज्जण मो बलिहार । हूँ सज्जण पगपानही सज्जण मो गलहार ।—ढोला॰ दू॰, १७६ ।
हूँ पु संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अहम्] अहंभाव । अहंता । निजत्व का अभिमान । उ॰—दादू हूँ की ठाहर है कहौ, तन की ठाहर तूँ । री की ठाहर जी कहौ, ज्ञान गुरु का यौं ।—दादू॰, पृ॰ १८ ।