अंत्यानुप्रास

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हिन्दी

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अंत्यानुप्रास संज्ञा पुं॰ [सं॰ अन्त्यानुप्रास] पद्य के एक चरण के अंतिम अक्षर पूर्ववर्ती स्वर का किसी अन्य चरण के अंतिम अक्षर और पूर्ववर्ती स्वर से मेल । पद्य के चरणों के अंतिम अक्षरों का मेल । तुक । तुकबंदी । तुकांत । उ॰—श्रुतिकटु मानकर, कुछ वर्णों का त्याग, वृत्तविधान, लय, अंत्यानुप्रास आदि नाद-सौंदर्य-साधन के लिये ही है ।—रस॰, पृ॰ ४६ । विशेष—जैसे, सिय सोभा किमि कहौं बखानी । गिरा अनयन नयन बिन बनी ।—तुलसी (शब्द॰) । इस चौपाई के दोनों चरणों का अंतिम अक्षर 'नी' है । हिंदी कविता में ५ प्रकार के अंत्यानुप्रास मिलते हैं ।(१)सर्वात्य, चिसके चारों चरणों के अंतिम वर्ण एक हों । उ॰—न ललचहु । सब तजहु । हरि भजहु । यम करहु । (शब्द॰) । (२) समांत्य विषमांत्य, जिसके सम से सम और विषम से विषम के अंत्याक्षर मिलते हों । उ॰—जिहिं सुमिरत सिधि होइ, गणनायक, करिवर बदन । करहु अनुग्रह सोई, बुद्धिराशि शुभ गुणसदन ।—तुलसी (शब्द॰) । (३) समांत्य जिसके सम चरणों के अंत्याक्षर मिलते हों विषम के नहीं । उ॰— सब तो । शरण । गिरिजा । रमणा (शब्द॰) । (४) विषमात्य, जिसके विषम चरणों के अत्याक्षर एक हों, सम के नहीं । उ॰— लोभिहि प्रिय जिमि दाम, कामिहि नारि पियारि जिमि । तुलसी के मन राम, ऐसे ह्वै कब लागिहौ ।—तुलसी (शब्द॰) । (५) समविषमांत्य, जिसके प्रथम पद का अंत्याक्षर द्वितीय पद के अंत्याक्षर के समान हो । उ॰—जगो गुपाला । सुभोर काला । कहै यसोदा । लहै प्रमोदा (शब्द॰) ।