अकल

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अकल ^१ वि॰ [सं॰ अ+कल]

१. जिसके अवयव न हों । अवयवरहित । उ॰—ब्रह्म जो ब्यापक बिरज अज अनीह अभेद ।—मानस १५० ।

२. जिसके खंड न हों । र्स्वांगपूर्ण । अखंड । उ॰— अकल कला को खेल बनिया, अनंत रूप दिखाइया ।— गुलाल॰, पृ॰ ३८ ।

३. जिसका अनुमान न लगाया जा सके । परमात्मा का एक विशेषण । उ॰—व्यापक अकल अनीह अज निरगुन नाम न रूप ।—मानस, १ ।२०५ ।

४. पु बिना गुण या चतुराई का कलाहीन ।

अकल ^२पु वि॰ [सं॰ अ+ हिं॰ कल = चैन] विकल । व्याकुल । बैचैन । उ॰—कामिनी के अकल नूपुर, भामिनी के हृदय में भय ।—अर्चना, पृ॰ ६३ ।

अकल ^३पु संज्ञा स्त्री॰ दे॰ 'अकल' । उ॰—मरदूद तुझे मरना सही । काइम अकल करके कही—संत तुरसे॰ पृ॰ १४ । मुहा॰—अकल गुद्दी में होना = बुद्धि का काम न करना । अकल का छिप रहना । उ॰—'इन्होंने सब कुछ कहा । आपकी अकल क्या गुद्दी में थी? आपको क्या हो गया था ?'—सैर॰, पृ॰ ४१ । अकल घास चरने जाना = दे॰ 'अकल का चरने जाना' । उ॰—'यहाँ प्लेग का बड़ा प्रकोप है, इसलिये अकल घास चरने चली गई है' ।—पोद्दार अभि॰ ग्रं॰ पृ॰ ८९७ । अकल गुजर जाना = बुद्धि खत्म होना । समझ कान रह जाना । उ॰—अकल जाती है इस कूचे में अय 'जामिन' गुजर पहले ।—कविता कौ॰ भा॰ ४ पृ॰ ६६२ ।