अगस्त्य
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
अगस्त्य संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. एक ऋषि का नाम जिनके पिता मित्रावरुण थे । विशेष—ऋग्वेद में लिखा है कि मित्रावरुण ने उर्वशी को देखकर कामपीड़ित हो वीर्यपात किया जिससे अगस्त्य उत्पन्न हुए । सायणाचायं ने अपने भाष्य में लिखा है कि इनकी उत्पत्ति एक घड़े में हुई । इसी से इन्हें मैत्रावरुणि, और्वशेय, कुंभज घटोद्- भव और कुंभसंभव कहते हैं । पुराणों में इनके अगस्त्य नाम पड़ने की कथा यह लिखी है कि इन्होंने बढ़ते हुए विंध्य पर्वत को लिटा दिया । अतः इनका एक नाम विंध्यकूट भी है । पुराणों के अनुसार इन्होंने समुद्र को चुल्लू में भरकर पी लिया था जिससे ये समुद्रचुलुक और पीताब्धि भी कहलाते है । कही कहीं पुराणों में इन्हे पुलस्य का पुत्र भी लिखा है । ऋग्वेद में इनकी अनेक ऋचाएँ है ।
२. एक तारे या नक्षत्र का नाम । विशेष—यह भादों में सिंह के सूर्य के १७ अंश पर उदय होता है । इसका रंग कुछ पीलापन लिए हुए सफेद होता है । इसका उदय दक्षिण की ओर होता है इससे बहुत उत्तर के निवासियों को यह नहीं दिखाई देता । आकाश के स्थिर तारों में लुब्धक को छोड़कर दूसरा कोई तारा इसकी तरह नहीं चमचमाता । यह लुब्धक से ३५° दक्षिण है ।
३. एक प्रसिद्ध पेड़ । विशेष—यह पेड़ ऊँचा और घेरेदार होता है । इसकी पत्तियाँ सिरिस के समान होती हैं । इसके टेढ़े मेढ़े फूल अर्धचंद्राकार, लाल और सफेद होते हैं । इसके छिलके का काढ़ा शीतला और