अघोर
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
अघोर ^१ वि॰ [सं॰]
१. जो भीषण या भयंकर न हो (को॰) ।
२. सौम्य । प्रियदर्शन । सुहावना । —उ॰—'तब श्रीकृष्ण ने अघोर बंसी बजाई' । — पोद्दार अभि॰ ग्रं, पृ॰ ४८३ ।
अघोर ^२ वि॰ [सं॰ घोर ]
१. घोर । कठिन । कठोर । उ॰—खौंचो राम धनुष चढ़ो जबहीं । महा अघोर शब्द भयो तबहीं । — कबीर सा॰ पृ॰ ३७ ।
२. भयंकर । भयानक । उ॰—दर्ब हरहिं पर सोक न हरहीं । सो गुरु नर्क अघोरहि परहीं । — सं॰ दरिया, पृ॰ ७ ।
अघोर ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. शिव का नाम या एक रूप ।
२. एक पंथ या संप्रदाय । विशेष—इसके अनुयायी न केवल मद्य मांस का व्यवहार अत्याधिक करते हैं, वरन् वे नरमांस, मल मूत्र आदि तक से घिन नहीं करते । कीनाराम इस संप्रदाय के बडे प्रसिद्ब पुरुष हुए हैं ।
३. अघोर पंथ का उपासक । अघोरी । उ॰—मति के कठोर मानि धरम को तौर करै, करम अघोर डरै परम अघौर को । —भिखारी ग्रं॰ भा॰ २ पु॰ ३४ ।