अटकर
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
अटकर † संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰] दे॰ 'अटकल' । उ॰—(क) जैसें तैसें ब्रज पहिचानत । अटकरहीं अटकर करि आनत ।—सूर॰, १०५० (राधा॰) । (ख) अपनी अपनी सब कहै अटकर परै न कोई ।—सुदंर॰ ग्रं॰, भा॰ २, पृ॰ ७९० ।
अटकर † संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰] दे॰ 'अटकल' । उ॰—(क) जैसें तैसें ब्रज पहिचानत । अटकरहीं अटकर करि आनत ।—सूर॰, १०५० (राधा॰) । (ख) अपनी अपनी सब कहै अटकर परै न कोई ।—सुदंर॰ ग्रं॰, भा॰ २, पृ॰ ७९० ।