अतिचार
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
अतिचार संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. सीमा से आगे बढ़ जाना । अतिक्रमण करना । उ॰—मेरा अतिदार न बंद हुआ उन्मत रहा सबको धेरे ।—कामायनी, पृ॰ ७१ ।
२. ग्रहों की शीघ्र चाल । विशेष—जब कोई ग्रह किसी राशि के भोगकाल को समाप्त किए बिना ही दूसरी राशि में चला जाता है तब उसकी मति को अतिचार कहते हैं ।
३. जैनमतानुसार एक विघात: व्यतिक्रम ।
४. तमाशबीनी और मर्यादा भंग करने का जुर्म । नाचरंग के समाजों में अधिक संमिलित होने का अपराध । विशेष—चंद्रगुप्त के समय में जो रसिक और रँगीले बार बार निषेध करने पर भी नाचरंग के समाजों में संमिलित होते थे, उनपर तिन पण जुर्माना होता था । ब्राह्मण को जूठी या अपवित्र वस्तु खिला देने या दूसरे के घर में घुसने पर भी अतिचार दंड होता था ।